भारतवर्ष के इतिहास की गाथाओं से प्रेरित होकर कलमकार कन्हैया लाल गुप्त जी एक पैगाम दे रहे हैं कि उन कहानियों/कथाओं से जो कुछ भी सीखा हो उसे भूलो नहीं बल्कि जीवन में आत्मसात करो।

मैं पैगाम मुहब्बत का देने आया हूँ।
सतयुग में मनु बन प्रेम का पैगाम दिया।
त्रेता में राम बन मर्यादा पुरुषोत्तम हुआ।
मैं द्वापर में कृष्ण बन गीता दिया था।
मैंने कलयुग में भी कई रूप धारण है।
कभी बुद्ध रूप में शांति का वरण किया।
कभी ईसा बन मानवता का त्रास हरा है।
कभी मुहम्मद के रूप में कलमा किया।
कभी कबीर बन मानवता की रक्षा की।
कभी मीरा बन श्याम का गुणगान किया।
कभी तुलसी बन सत्यधर्म बयान किया।
कभी जायसी बन प्रेम संधान को बखाना।
कभी सूर बन अंधे आंखों से बालपन देखा।
नानक बन धर्म की ध्वजा चँहूओर फहराया
शंकराचार्य बन सर्वधर्म समन्वय किया।
रैदास बन ऊँचनीच मिटाने का कार्य किया।
रहीम बन सर्वधर्म समभाव धर्म अपनाया।
रसखान बन मनमोहन को जी भर चाहा।
गांधी बन सत्य अहिंसा जग में फैलाया।

~ डॉ. कन्हैया लाल गुप्त

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