जब आप सफलता के बहुत करीब हों और एक किसी कारणवश सफल न हों पाएँ, तब उस कमी पता चलता जो बाधक बनी और एक तरह से पछतावा सा होने लगता है। साकेत हिन्द की इन पंक्तियों में इसी मंज़र का ज़िक्र है-
मिल न सकी मंज़िल मेरी, आज ठोकर ऐसी लगी।
एहसास हुआ उस गलती का, जो पहले की थी।।आती है नज़र सारी ही खामियाँ, कभी न कभी।
छिपा नहीं सकता इन्हें, वक़्त का दामन कभी।।एहसास हुआ आज, शिकस्त पाने के बाद।
गवाही देते हैं बीते हुए कल, बीती ज़िंदगी की।।दूर जाना ही पड़ा, मंज़िल के करीब आकर।
दीवार बनकर खड़ी थी, किसी वक़्त की गल्ती।।हर एक ठोकर, याद है दिलाती।
उन बीते दिनों की, जब गलतियाँ की थी।।काश! वैसा न किया होता, कहता है दिल मेरा आज।
करार दिल को आता, कदमों में मंज़िल होती।।~ साकेत हिन्द
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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