जीवन की गाथा, उसका सार कलमकार कन्हैया लाल गुप्त जी ने अपनी इस रचना में प्रकट किया है। हर पल शुभ होता है और उसे जी भरकर जीना चाहिए।

पल पल मन घबड़ाता है यही सोचकर रह जाता है।
जाने वाला पल से अच्छा आने वाला पल होगा।
पल पल जीवन बीत रहा है जैसे रेत हो मुठ्ठी में।
बचपन बीता आयी जवानी चाल हुई है कुछ मस्तानी।
आया बुढ़ापा गयी जवानी आपाधापी की बनी कहानी।
जीवन हाय निष्काम न बीता, ईश्वर से मन रहा अछुता।
पल पल अब तो मन घबड़ाये, ईश्वर के बिन रहा न जाए।
जीवन की तो यही कहानी, रोटी, लकड़ी, चुल्हा पानी।
पल पल इसमें जीवन बीता, अब तो भज मन राम कहानी।

~ डॉ. कन्हैया लाल गुप्त ‘किशन’

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