सहनशीलता और धैर्य की विस्तृत है जो मूर्ति।
अपने ही अणु-अणु, कण-कण से देती है स्फूर्ति।।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सब को एक सा प्यार।
काला, गोरा, ऊंच-नीच सबसे सम व्यवहार।।
हर पल कितने चोट सहती पर रखती ना कोई बैर।
टुकड़ों में बांटी गई पर चाहे सबकी हरपल खैर।।
जन्म लेता जब नन्हा बच्चा इस धरती पर।
दया, धर्म व सदाचार का पाठ सीखता धरती पर।।
जीवन से मृत्यु तक का होता यहां संघर्ष है।
पर धरित्री रहती अडिग सदा ही सहर्ष है।।
दिया उसने कितने शुरवीरों को है जन्म।
धरती की इसी निष्ठा के हम ऋणी हैं आजन्म।।
~ डॉली सिंह