माँ जगत की जीवनदायिनी है।
खुशियों की त्रिवेणी प्रवाहिनी है।
माँ जीवन की बुनियाद है।
हर वक्त पुत्र के हित करती फरियाद है।
माँ पिता के क्रोध पर शीतल-सा पानी है।
दुनिया में कहीं भी माँ का ना मिला सानी है।
माँ धर्म-कर्म व प्रेम का साधनापूर्ण योग है।
संतान की खुशियों के सारे उसके प्रयोग है।
माँ पिता के प्रहार का प्रेममय प्रतिकार है।
माँ से ही जीवन है, माँ से ही संसार है।
माँ हर विरोध को समर्थन में बदलने की ताकत है।
माँ का विरोध हो तो फिर किसकी हिमाकत है।
माँ पूर्व-कर्मों का पुण्य बल है।
माँ की सेवा से मिलता तीर्थो का फल है।
~ राजेश कुमावत