हमारी योजनाएं होनी चाहिए इस प्रकृति के संरक्षण के लिए, सभी प्राणियों के हित के लिए और विपत्तियों/महामारी से जीतने के लिए। कलमकार कन्हैया लाल गुप्त जी की यह कविता पढें जिसमें वे हर क्षेत्र के लिए एक नई और दूरदर्शी योजना की पैरवी कर रहे हैं।
चलो अब फिर से योजना बनाते हैं, सारे विश्व को फिर से समझाते हैं।
शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय, पर्यावरण, पर्यटन, बागवानी, कृषि, जनसंख्या,
परिवार, अर्थव्यवस्था की योजनाएँ बनाते हैं।
सर्व शिक्षा अभियान को सारे जग में फैलाते हैं,
स्वास्थ्य पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की दिशा निर्देशों को अपनाते है।
न्याय सस्ता, सुलभ और गरीबों, मजलूमों के हक में हो,
ऐसा कोई नया कानून हमसब बनाते हैं।
पर्यावरण की भी कुछ देखभाल ऐसी हो कि
मानवता पर लोभ लिप्सा हावी न हो जाए,
ऐसा पर्यावरण संरक्षण का कठोर नियम बनाते हैं।
जिससे कोई चीन का वुहान न बने,
सारा विश्व ही कब्रिस्तान न बनें,
ऐसी कोई नई योजना को अमलीजामा पहनाते है।प्राकृतिक सुषमा तो ऐसी हो कि
आधी से अधिक बिमारियाँ नैसर्गिक प्राकृतिक निरिक्षण से ही दूर हो जाए,
प्रकृति चिकित्सा का कुछ ऐसा आयाम, सोपान बनाते हैं।
बागवानी, कृषि की पुरानी परिपाटी को संवृद्धि करते हुए,
नये तकनीकों का उपयोग कर,
भारत कृषि प्रधान देश था, है और रहेगा,
सिन्धु नदी घाटी की संस्कृतियों का पुनः सृष्टि कर,
वेदों की ऋचाओं को सार्थक, सफलीभूत बनाते हैं।
जनसंख्या का मानवीय संसाधन के रूप में उपयोग करते हुए,
इसकी मेधा, सर्जना, शक्ति को और प्रखर, प्रबलतम बनाते हैं.
परिवार नाभिकीय परिवार न हो, संयुक्त हो,
जिसकी प्रशंसा संयुक्त राष्ट्र संघ ने की हो,
जहाँ चार पीढ़ियां एक साथ ज्ञान, अनुभव का पीढ़ियों में स्थानांतरण करते हो,
ऐसी योजना हमें बनानी है।
अर्थव्यवस्था भी सुगठित हमें बनानी होगी,
आज की नहीं कि गरीब और गरीब होता जाय और
अमीर और अमीर होता चला जाय,
धन का वितरण ऐसा होना चाहिए कि
कबीर की यह उक्ति प्रासंगिक बन जाय कि
साईं इतना दीजिये जामे कुटुबं समाय,
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाय.~ डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन