नदियों का हमारे विकास में बहुत योगदान है। प्राचीन काल से ये हमारी संस्कृति और समृद्धि की परिचायक रहीं हैं। नदियों का संरक्षण हमारी जवाबदेही है। आओ हम कलमकार मुकेश ऋषि वर्मा के विचार इस कविता में जानें।
सृष्टि का निर्माण नित-नित नदियाँ करतीं
प्रकृति का श्रृंगार हरदम नदियाँ करतींमनुज ही नहीं, हर प्राणी को जीवनदान देतीं
हमारे देश में नदियाँ अमरता का वरदान देतींलेकिन अब आदमी के स्वार्थ ने –
होकर निर्लज्ज, उत्खनन की तोड़ी है सीमा
जलचर जीवों को दिया है जहर धीमाप्रदूषण का ऐसा करतब दिखाया
नदियों को कीचड़वाला नाला बनायामानवी उत्पात ने खुद मानव को संकट दिया है
आधुनिक विकास ने ही विनाश पैदा किया हैघुट-घुट मरती नदिया की धारा
मत भूल मनुज मरी नदियाँ तो मरेगा जग साराअगर देर हो गई तो लुप्त होंगे-
मीन, कछुए, सीपी, घड़ियाल…
आयेगी प्रकृति प्रलय, मनुज तू होगा बहुत बेहालसमय रहते चेत जा रे!
बहने दें स्वच्छ निर्मल नदी की धारा
नदियाँ बचाओ! कर्त्तव्य है हमारा-तुम्हारा
~मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
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