आत्महत्या के बारे में सोचना ही पाप है, इस अपराध को अंजाम देना जघन्य अपराध है। इस कृत्य को करनेवालों को लगता है कि वे सारी समस्याओं का समाधान करने जा रहे हैं किंतु वे अपने प्रियजनों के लिए अनेक समस्याओं का निर्माण कर देते हैं। मुकेश कुमार ऋषि वर्मा ने भी आत्महत्या को बुराई माना है और इसे न अपनाने की बात अपनी कविता में कही है।
तुम्हारे जाने से
किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा
माह दो माह का रोना-धोना होगा
ज्यादा से ज्यादा, बस …!
सूरज वैसे ही निकलेगा,
चंदा वैसे ही चमकेगा,
तारे वैसे ही टिमटिमायेंगे
जैसे तुम्हारे जीते जी क्रियाशील हैं |
सच बताऊं –
ये सारा ब्रह्माण्ड दु:खी है
अकेले तुम ही नहीं …
तुम वो बनो
जो तुम्हें तुम्हारा हृदय बनाना चाह रहा है
किसी दूसरे के चाहने न चाहने से
तुम पर कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए
अगर तुम जीना चाहते हो
कुछ बनना चाहते हो तो,
उठो और हृदय की सुनो …
आत्महत्या किसी समस्या का हल नहीं है
तुम एक नया इतिहास बना सकते हो
पत्थर को पिघलाकर मोम बना सकते हो
बस जग की नहीं
अपने हृदय की सुनो और
निरन्तर चलते हुए
सब्र करो,
विश्वास करो
स्वयं पर
अपने इष्ट पर..~ मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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