जगत जननी नारी

जगत जननी नारी

कलमकार विमल कुमार वर्मा नारी को जगत जननी के रूप में संबोधित किया और उनकी महानता के कुछ तथ्य इस कविता में रेखांकित किया है।

जगत जननी कहलाए नारी,
सृष्टि रचियता कहलाए नारी,
श्रेष्ठता की खुमार है नारी,
ममता की बरसात है नारी।

जीवन संगिनी की फुहार दर्शाए जाए नारी,
वचन की कर्तव्य ‌निभाया जाए नारी,
पवित्रता की डोर बंधे पड़े एक नारी में,
विविधता का रूप दिखें एक नारी में।

क्षत्रिय का रूप धारण कर लाखों लोगो से लड़ी थी वो,
मर्दों के संग युद्ध में बराबरी का भागी बनी थी वो,
चिलखाती दुनिया में सबपे भारी पड़ी थी वो,
वो कोई और नहीं, मिशाल नारी थी वो।

मंदिर गया, मस्जिद गया, गया मैं गिरिजाघर
सबमें नजर तू आया मां जब से हुआ मैं बेघर,
करुणा की दीप पर्जलीत कर मूरत मै समाये मां,
अखंडता का भागी बनकर खुद को बताए मां।

वो नारी, मां, बहन, पत्नी का फ़र्ज़ निभाए जाए
खुद को दोषी बताकर पुण्य की भागी बनी जाए,
वो नारी शक्ति की बल सदियों से दिखाए जाए,
खुद को दुर्गा मै परिवर्तन कर मां कहलाए जाए।

~ विमल कुमार वर्मा 

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