विवाह

विवाह

दहेज़ एक बुराई है, इस कुप्रथा को समाज से दूर करना हम सब का कर्तव्य है। कलमकार कन्हैया लाल गुप्त जी ने विवाह के शुभ बंधन पर इस कविता के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किये हैं।

विवाह दो हृदयों का मिलन है।
विवाह दो कुलों का मिलन है।
विवाह दो संस्कारों का संगम है।
विवाह संतानों की पीढ़ियों को बनाता है।
बेटी भी जाकर दूसरे कुल को पुष्पित करती है।
बहू दूसरे कुल से आकर हमारे संस्कारों को बढ़ाती है।
हाथ सीता का राम ने थामा था।
हाथ रुक्मिणी का कृष्ण ने थामा था।
हाथ शंकर ने पार्वती का थामा था।
मनु ने भी सर्वप्रथम हाथ शतरूपा का थामा होगा।
आदम ने हौवा का थामा होगा।
आजकल तो विवाह एक व्यापार बन गया है।
रिश्तों को तार- तार कर गया है।
पुत्री का पिता लाचार है, दहेज के दानव का शिकार है।
अब कैसे संस्कार पुष्पित और पल्लवित होगा।
रिश्तों की यह बेल किस भाँति बढ़ेगी।

~ डॉ. कन्हैया लाल गुप्त ‘शिक्षक’

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