नारी
नारी को नारी रहने दो
वो भी एक इंसान हैै
सुख दुख के भावों से बनता
उसका भी संसार है
देवी का प्रतिरूप बनाकर
लज्जा का अंबर न लपेटो
पौरूषता के झूठे दंभ में
ना उसकी कोई सीमा बनाओ
उङती है तो पंख न कतरो
बस थोङा सा अर्श बनाओ
कर सकते हो तो इतना कर दो,
नारी को नारी रहने दो
दे दो उसको थोङा सम्मान
पंख फैलाए उङने दो तुम
लेने दो उसे अपना आसमां
शक्ति
नारी सुरक्षा के ही बहाने
गूँजी बात हमारी है,
वह सम्मान हमें भी दे दो
जिसके हम अधिकारी हैं।
महत्वाकांक्षी जो बन जाएं
तो कहना कि मक्कारी है,
समान अवसर हो प्रगति के
इच्छा यही हमारी है।
वह सम्मान हमें भी दे दो
जिसके हम अधिकारी हैं।
सीमा प्रहरी बन कर देखो
खड़ी फौज़ हमारी है,
पर दहेज़ की खातिर जलते
ये कैसी लचारी है।
वह सम्मान हमें भी दे दो
जिसके हम अधिकारी हैं।
सब ने माना कि हम बेटों
से भी आज्ञाकारी हैं,
किंतु पेट के अंदर मरते
ये भी तो दुष्वारी है।
वह सम्मान हमें भी दे दो
जिसके हम अधिकारी हैं।
व्योम क्षेत्र से इस धरा तक
झूमें पताका हमारी हैं,
कल तक पीछे पीछे चलते
आज तो वर्दीधारी हैं।
वह सम्मान हमें भी दे दो
जिसके हम अधिकारी हैं।
जल में,थल में, अभेद गगन में
क्षमता विस्मयकारी है,
खोटा सिक्का हमें न मानो
हम अनमोल खिलाड़ी हैं।
वह सम्मान हमें भी दे दो
जिसके हम अधिकारी हैं।
हमको शक्तिहीन न समझो
हम तलवार दो धारी हैं,
घर में तो लक्ष्मी बन बैठे
पर रण में झलकारी हैं।
वह सम्मान हमें भी दे दो
जिसके हम अधिकारी हैं।
दिखा दे शक्ति का अवतार है तू
हे नारी उठ
उठा ले भाल, कृपाण, त्रिशूल
बन जा रणचङी, दुर्गा, भवानी
अब तेरी है बारी
तुझे स्वयं लेना है प्रतिकार
नही है तू अबला
बन जा सबला
दिखा दे शक्ति का अवतार है तू!
चारो दिशाओ मे दुर्योधन दुशासन घूम रहे
मूक बना देख रहा संसार
तेरी अस्मिता जार जार हो रही
अब न आएगे सुदर्शनधारी
तुझे स्वयं लेना है प्रतिकार
नही है तू निर्बल
बन जा प्रबल
दिखा दे शक्ति का अवतार है तू!
मानव बन गया है दानव
नरभक्षी भेड़िया घूम रहे गली गली
जिस्म को नोच रहे, निवस्त्र उठा कर फेंक रहे
कब तक सीता द्रौपदी रूप मे घाव सहेगी
अब नही मिलेगा न्याय
तुझे स्वयं लेना है प्रतिकार
नही है तू याचक
बन जा रक्षक
दिखा दे शक्ति का अवतार है तू!
मैं स्त्री हूँ
मैं स्त्री हूँ
कभी सकुचाई सी
कभी घबराई सी
कभी शेरनी सी
कभी ममतामयी सी
कभी गुस्सैल सी
कभी सुशील सी
कभी नाजुक सी
कभी कठोर सी।
मैं एक नारी हूँ, है मेरे रूप अनेक
पर मैं देवी नहीं ना ही देव पुत्री हूँ
तुच्छ सी हूँ, मैं पूजनीय नहीं
मैं कोई पहेली नहीं
हैं मुझे भी जीने का अधिकार।
हर रिश्ते को प्यार से निभा जाती हूँ,
टूट के भी सबको जोड़ जाती हूँ,
पर हाँ अब मैं भी बदल रही हूँ,
खुद के लिए जीना सीख रही हूँ।
अब मैं सारी बंदिशे से मुक्त होना सीख रही हूँ
चुनौतियों से खुद निपटना सीख रही हूँ
खुद की ताकत खुद की आवाज बन रही हूँ।
हे मानव! मुझे तुम न समझो अबला
स्त्री के चरित्र पर तुम ना बजाओ तबला
थक चुकी हूँ इंतिहान देते देते।
नारिवाद का अब दो ना कोई विमोचन
बंद करो अब महिलाओं का शोषण
भोग बिलास की मैं कोई वस्तु नहीं
इंसान हूँ मैं, कृपया मुझे भी जीने दो।
स्त्री हूँ मैं, स्त्री ही मुझे रहने दो।।
नारी शक्ति
अद्धभुत शक्ति के साथ तेरा जन्म हुआ,
नारी ने ही रचा संसार,
पर पुरुष नारी शक्ति से अनजान,
आदिकाल से करते है, नारी का अपमान,
पर नारी बड़ी सहजता से
हर दर्द को सह लेती,
क्योंकि नारी वो डोर है,
जो सभी को प्रेम से
बाधँने की क्षमता रखती,
पर पुरुष तुझे
अबला, कमजोर कह कर
अपने आप पर गौरवान्वित होते,
नारी कोमल है, कमजोर नही,
इतिहास गवाह है..
नारी ने जो संकल्प लिया,
उसको जी-जान से पूरा किया,
चाहे वो सत्ती हो, या रानीलक्ष्मी बाई।
नारी होना, आसान नही,
नारी अपने सपनों को छोड़कर,
दूसरों के घर को सजाती,
नारी जननी है, बहन है, सखी है,
नारी संस्कृति की भाषा है।
अफसोस मगर
पुरुष हर रोज
नारी सम्मान को ठेस पहुँचाते,
अबला, कमजोर कहकर
नारी का परिचय देते।
नारी सशक्तिकरण
नारी तू महान है,
हर क्षेत्र में तेरी महानता व्याप्त है,
फिर चाहे वो परिवार संभालना,
देश के लिए लड़ना,
या फिर समाज से प्रताड़ित होना,
हर कुछ में तेरी महानता झलकती है।
नारी तू सर्वश्रेठ है,
इस पुरुष प्रधान देश में तू सर्वश्रेठ है,
तुझे वह अधिकार नहीं मिलता
जिसकी तू हक़दार है,
फिर चुप चाप रह कर,
अपने कर्त्तव्य का पालन करना,
यही तेरे श्रेष्ठता का प्रमाण है,
खुद को अबला मत समझना,
नारी होने का अभिमान करना।
नारी तू जगत जननी है,
तुझ में ही माँ, बेटी, बहन, हर रूप है,
परिवार के हर फैसले लेने के अधिकार है तुझे,
परिवार पर जब भी कोई आँच आये
ढाल बन कर खड़ी रहती तू,
अपना हर फर्ज़ बखूबी निभाती तू,
तुझसे ही ये जहाँ है,
तेरे बिना ये बेजान है।
नारी तू शक्ति है,
आपार सहनशक्ति है तुझमें,
अनेक कष्टों, दुःखों, परेशानियों,
को सहकर उफ तक नहीं करती,
मानव जगत की वास्तविक
पहचान है तुझसे,
तुझसे ही जीवन का अस्तित्व है।
नारी
मैं नारी हूं
मैं कली मैं फुलवारी हूं
मैं ही दुर्गा मैं ही काली हूं
मैं नारी हूं।
इस शब्द पर मुझे अभिमान है
क्युकी नारी जगत में महान् है।
संस्कृति की मैं पहचान हूं
धरती की मैं मान हु
मैं शर्म नहीं , स्वाभीमान हूं
मैं नारी हूं।
जीवन की कठोरता को सस्ती
पढ़ जाने पर समझ नहीं आती
मैं ही जीत मैं ही हार हूं
मैं नारी हूं।
तुझमें है बल
तू है नारी तू, बढ़ती चल,
तू है अविचल, तुझमें है बल ।
रह बेपरवाह, चुन अपनी डगर,
होकर के निडर, तू बढ़ती चल।
इस जग का क्या, यह रोकेगा,
पथ में काँटे यह बोएगा,
ना हो तू विकल, तू चलती-चल,
तू है नारी तू बढ़ती चल,
तू है अविचल तुझमे है बल।
घर की गरिमा, सबका संबल,
हिय में है प्यार बसा अविरल,
सबकी चिंता करती पल-पल,
पर नहीं किसी से कोई छल,
तू है नारी तू बढ़ती चल,
तू है अविचल, तुझमे है बल।
हर रिश्ते की ताकत है तू,
स्पर्श तेरा, सबकी धड़कन,
कोमल किसलय, तू सहनशील,
हर वक्त के साथ तू ढलती चल,
वट-वृक्ष समान तू छाया कर,
मुस्कान तेरी है सबसे प्रबल।
तू है नारी तू बढ़ती चल।
तू है अविचल तुझमे है बल।
नारी तू महान है
लाख दर्द हो फिर भी हर-पल मुस्कुराती है,
अपनी मुस्कुराहट से अपने सारे गम छुपाती है।
हाँ! वो नारी ही है जो एक गृहणी बन
अपने व्यक्तित्व से हर-पल घर संवारती है।
हर क्षेत्र में तू बढ़-चढ़ प्रतिभाग करती है,
अपने जीवन में सदैव तू त्याग करती है।
तेरी मुस्कुराहट ही तेरा श्रृंगार है,
तुझ बिन सूना ये संसार है।
तू जग की जननी, तू ही नवयुग की निर्माता है,
तुझ बिन जीवन अधूरा है,
तू है तो ये संसार पूरा है।
तेरी मुस्कान ही तेरी पहचान है,
नारी तू महान है, नारी तू महान है!
नारी मन
एक नहीं दो मन होते हैं नारी के,
एक पति का एक पिता का।
कभी एक मन आगे,
दूसरा मन पीछे,
कभी दूसरा आगे,
पहला पीछे,
क्यों होते हैं केवल नारी के ही दो मन?
क्योंकि केवल घर ही छूटता है पिता का,
बाक़ी सब आता है साथ।
माँ के हाथों का स्वाद,
उनके दिये हुए संस्कार,
मन में रहते दिन और रात।
समेट लाती है यादें बचपन की,
बातें अपनों की मस्ती सहेलियों की,
जमातीं अलमारी में काकी बुआ की साड़ी।
बताती जाती क़िस्से अपने गली चौबारे के।
रख देती अचार मसाले रसोई घर के डिब्बे मे
सजाती जाती घर का हरेक कोना
दोनों मन से जीवन है उसका।
दोनों का सामंजस्य ही उद्देश्य है उसका।
ईश्वर से चाहूँगी मैं पूछना,
केवल नारी को ही क्यों इस लायक़ समझा
केवल नारी के ही दो मन क्यों?