पृथ्वी के घाव भर रहे हैं

पृथ्वी के घाव भर रहे हैं

पृथ्वी के घाव भर रहे हैं
जी हाँ
सही सुना, आपने
पृथ्वी के घाव भर रहे हैं
हाँ, वही घाव
जो उसे मनुष्य ने दिए थे
अपनी अनगिनत महत्वाकांक्षाओं की तृप्ति के लिए
अपनी अपूर्ण इच्छाओं की पूर्ति के लिए
अपने निर्मम स्वार्थ की सिद्धि के लिए
अपनी बेशर्म लिप्साओं के वशीभूत होकर
आज जब मानव घरों में कैद है
दर्द से कराह रहा है
और उसके घाव हरे हो रहे हैं
तो पृथ्वी के घाव भर रहे हैं
जी हाँ
सही सुना, आपने
पृथ्वी के घाव भर रहे हैं।

जब इस महामारी की चपेट में आकर
पूरी दुनिया चीत्कार कर रही है
असंख्‍य मानव अपने जीवन की
अंतिम साँसे गिन रहे हैं
तो पृथ्वी साँस ले रही है
जी हाँ
सही सुना, आपने
पृथ्वी साँस ले रही है।

जो धुएँ के बादल दिखाई देते थे
गाड़ियों का शोर सुनाई देता था
वह सब थम गया है
और इंसान जीवित रहने के संघर्ष में
घरों के अंदर
बंद होकर रह गया है
तो पृथ्वी जी रही है
जी हाँ
सही सुना, आपने
पृथ्वी फिर जी रही है।

– शिम्‍पी गुप्ता

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