मात्र कहने के लिए हम बोल सकते हैं कि उसे भूला दिया है, किंतु किसी को भूला पाना असंभव है। गैरों को तो हम याद भी नहीं करते जबकि वे हमें कोई भी तकलीफ नहीं पहुंचाते हैं, हमें रूलाने वाले अपने ही होते हैं जिन्हे चाहकर भी भुलाया नहीं जा सकता है। कलमकार विजय कनौजिया जी की एक कविता पढ़िए- वही आकर रुलाता है।
ठिठुरती ठंड में यादों का
मौसम भी सताता है
जिन्हें माना सदा अपना
वही आकर रुलाता है ..।भुलाए याद न भूले
चाह कर चाह न भूले
करूं कितना जतन फिर भी
न वो यादों से जाता है ..।मनाना चाहूं खुद को मैं
मगर माने नहीं ये दिल
मिले साथी बहुत अब तक
न कोई और भाता है ..।चलो सृजन करेंगे प्रेम के
कुछ और ऋतुवों का
मान जाए काश ये दिल
न जाने क्यूं घबराता है ..।ठिठुरती ठंड में यादों का
मौसम भी सताता है
जिन्हें माना सदा अपना
वही आकर रुलाता है ..।~ विजय कनौजिया
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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