कभी-कभी किसी की बातें, साथ और यादें बहुत अच्छी लगती हैं। साकेत हिंद की पंक्तियाँ (बातें तुम्हारी) प्रियजन के साथ और वियोग की दशा को चित्रित करती हैं।
बड़ी-बड़ी बातें तुम्हारी,
मुझे कहीं गुमराह न कर दें।
संग तुम्हारे सारे सपने,
सुहाने और पूरे होते लगते हैं।
अकेलापन अक्सर ही कह जाता,
ये सपने कहीं बर्बाद न कर दें।
तुम पर मेरा इतना ऐतबार,
मुझे कहीं लापरवाह न कर दें।
बढ़ने लगी है मनमानी,
हँसी-मज़ाक अब अच्छे लगते हैं।
अठखेलियाँ हैं आभास कराती,
ये शरारतें कहीं बेपरवाह न कर दें।
खुद से ही होनेवाली बातों के मंजर,
मुझे कहीं कमजोर न कर दें।
यादें, किस्से और शरारतें,
नई-नई बातें बताने लगते हैं।
हर पल हो साथ- मानो ऐसा लगता,
ये एहसास कहीं पागल न कर दें।
~ साकेत हिन्द