समय है अपनी चेतना जगाने का

समय है अपनी चेतना जगाने का

प्रकृति का बलात्कार
तो आदम ने बहुत किया

हर शतक हमने
अनदेखा तो कर दिया
विकराल काल
के संकेत को

कलियुग का है यह अदृश्य असुर
सुन सके तो ठीक से सुन
इसके तांडव का

हर एक सुर एक ताल को
एक शतक के अंतराल
फिर खड़ा है
ये विकराल “काल”

करोना प्रकृति का और
बलात्कार – अत्याचार ऐ आदम
अब समय है अपनी चेतना जगाने का

समय है “ध्यान” का
और चेत जाने का

~ अतुल ‘कृष्ण’

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