डॉ कन्हैया लाल गुप्त ‘शिक्षक’ का मानना है कि आवाज/पुकार/आवाहन भी अनेक तरह के होते हैं, इसे उन्होंने अपनी कविता में लिखा है। हमें भी अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग करते हुए सच्ची और प्रखर आवाज को ही प्रेरणास्रोत के रूप में आत्मसात करना चाहिए।
आवाज भी कई प्रकार के होते हैं।
कुछ मधुर तो कुछ खूर्राट होतें है।
मधुर आवाज तो आकृष्ट करती है।
किंतु कठोर आवाज घात करती है।
जब कोई राग मल्हार छेड़ता है।
तो व्यक्ति क्या प्रकृति आकर्षित होती है।
जब कोई राग दीपक छेड़ता है।
तो दीपक प्रज्ज्वलित होता है।
आवाज में बहुत दम होती है।
गाँधी जी की एक आवाज पर सारा देश उमड़ पड़ा था।
जब नौ अगस्त सन उन्नीस सौ बयालीस को
गाँधी जी ने देश वासियों से कहा- करो या मरो।
सुभाषचंद्र बोस की एक आवाज पर सारा देश उमड़ पड़ा था।
जब सुभाषचंद्र बोस ने कहा था कि तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूगाँ।
तब देश की माँ बहनों ने अपना सर्वस्व अर्पण कर डाला।
जब जयप्रकाश नारायण ने युवाओं को आवाज दी
तो देश के सारे युवा जन आंदोलन पर उतर आये।
आज पुनः उस आवाज की आवश्यकता है
जब माँ भारती अपने सच्चे लाल को पुकार रही है मुझे चोर, मक्कार, धूर्तों से बचाओं।
आतंकवाद, भष्ट्राचार, जातिवाद, सम्प्रदायिकता, अराजकता, अतिराष्ट्रवाद से
माँ भारती को उबारने की जरूरत है।
माँ भारती की आवाज पर सच्चे सपूतों को राष्ट्र सेवा की आवश्यकता है।
यही माँ भारती की सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
यही अंतस्तल की आवाज होगी।~ डॉ. कन्हैया लाल गुप्त
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