बेअदब

बेअदब

कलमकार अजय प्रसाद जी कहते हैं कि हम तो सीधी सरल भाषा में लिखते हैं परंतु यह हो सकता है कि किसी को बेअदबी सी महसूस हो जाए।

हाँ!
सही कहा
आपने
अदिबों की
नज़र
में ‘बेअदब’ हूँ मैं ।
क्योंकि
न मैं कहता गज़ल
हूँ ‘बहर’ में ,न लिखता हूँ
कोई गीत,नवगीत,कविता,दोहा
छ्न्द के दायरे में रहकर ।
न किसी विधा की है
कोई जानकारी,
न मैं हूँ किसी विधा में पारंगत ।
न कोई साहित्य की है तमीज़ ।
मैं तो सीधे-साधे,सरल शब्दोँ में
सीधे-साधे सरल लोगों की बातें
करता हूँ अपनी रचनाओं में ।
जो देखता,सुनता
और महसूस
करता हूँ
मैं ।
और मेरी
भावनाएँ
साहित्य के
नियमों से परे हैं ।

– अजय प्रसाद

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