अनेकता में एकता, हिन्द की विशेषता, यही तो भारत वर्ष है.
याद करो इतिहास का पन्ना, कर्मवती ने गुहारा था,
हुमायूँ ने सेना लेकर बहन की राखी का कर्ज उबारा था.
मोहन को भजते है रसखान, रहीम को है भारतीय संस्कृति का भान.
अब्दुल हमीद भी था रक्षक, बम जो घट गयी किया आत्मोत्सर्ग.
हम दूर क्यों जाते है भाई, हमें याद आतें है अबुल कलाम भाई.
पाकिस्तान को सबक सिखाने को जिन्होंने मिशाईल आजमायी.
सादा जीवन था उच्च विचार, शिक्षा की पूँजी ही काम आयी.
ये जाति धर्म छोड़ो भाई, इसने ही तो भारत में आग लगायी.
ये घड़ी बड़ी है संयम की, यह वक्त देश में नाजुक है.
ऐसे मत बनों तुम आत्महंता, ये वक्त बड़ा ही विभाजक है.
हमने तो इस मिट्टी में कुछ संस्कार के बीज तो बोये है.
धरती की आन को रखने को कबीर, गौतम, गांधी बोये है.
है आज जरूरत आदमियत की, मानवता की लाज बचानी है.
कुछ शर्म करो, कुछ शर्म करो ऐसे न इसको मिटानी है.
चाहे हो अलग पंथ हमारे, चाहे रवायत बिताने हो.
हम दिखे भले ही अनेक मगर भारत माँ की लाज बचानी है.
अलग अलग हम दिखें मगर अनेकता में एकता को दिखानी है.