हाथों में सामान थामे
कंधों पे बच्चे साधे
बीवी को साथ में ले
निकल पड़ा है अपने गांँव की ओर
नंगे बदन, नंगे पाँव है
आँखों में तो बस गाँव है।
साथ है पानी और कुछ रोटियाँ
ना जाने को है कोई घोड़ागाड़ियाँ
कंधों पे लटक रही हैं कुछ पोटलियाँ
पैरों में पड़ गई हैं बिवाइयाँ
नंगे बदन, नंगे पाँव है
आँखों में तो बस गाँव है।
बदन भी ना पूरा ढका है
फटी हुई है जगह-जगह से
बदन पे पड़ी धोतियाँ
मीलों लंबा सफर है
न धूप का डर है
नंगे बदन नंगे पाँव है
आँखों में तो बस गांँव है।
मीलों चल चुका है
अभी मीलों चलना है
बच्चे पूछते हैं
बापू! अभी और कितना चलना है
समझाता है कि बस कुछ दूर चलना है
अपने गाँव जल्दी पहुँचना है
नंगे बदन, नंगे पाँव है
आँखों में तो बस गाँव है।
~ शिम्पी गुप्ता