आपने सुना होगा कि सब्र का फल मीठा होता है। इसी कहावत पर अमल करते हुए हम बहुत जगह सब्र करते हैं। अनेक स्थानों पर सब्र के शिवा दूसरा चारा ही नहीं है। इसी विषय पर कलमकार प्रिया कसौधन की एक कविता पढ़ें।
मैं सब्र करती जा रही हूं।
जीवन की आशा से,
बढ़ती निराशा से,
खुशियों के हर पल से,
आज से और कल से
जीवन के मरुस्थल में शैने-शैने
जल भरती जा रही हूं।।मिलती हुईं उपमा से
अणिमा से लघुमा से
आंखों के सपनों से
नन्हे-नन्हे पंखो से उड़ान का दम
भरती जा रही हूं।
मैं सब्र करती जा रही हूं।।पेट की भूख से
व्यंजन से सूख से
मिट्टी की काया से
दुनियां की माया से
रेतीले जीवन में समंदर के किनारे
पर घरौंदे बना रही हूं।
मैं सब्र करती जा रही हूं।।~ प्रिया कसौधन