उठो प्यारे लाल

उठो प्यारे लाल

हर दिन एक नई शुरुवात होती है। प्रातः काल उठकर जब हम अपने दिन का शुभारंभ करते हैं तो सब कुछ अच्छे ढंग से संपन्न होते हैं। कुमार किशन कीर्ति इस कविता में आलस का परित्याग कर हर दिन को उत्तम बनाने की राय दी गयी है।

उठो प्यारे लाल
अब सुबह हो चुकी है
पंछियां चहचहा रही हैं
अब उठो प्यारे लाल
देखो प्यारी-प्यारी किरणें
जग को सुंदर बना रही हैं
आलस को त्याग कर सारें
काम पर जा चुके हैं

अब, उठो प्यारे लाल
मुर्गा बांग दे चुका है
कोयल रानी कुक रही है
कलियाँ सब खिल चुकी हैं
अब, तुम भी आलस त्यागो
उठो प्यारे लाल
अब सुबह हो चुकी है

~ कुमार किशन कीर्ति

हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है। https://www.facebook.com/hindibolindia/posts/394106498163195

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