चल दिये हैं पैदल

चल दिये हैं पैदल

बड़ी खुद्दारी के साथ वो अपनी नन्ही सी बच्ची को कंधे पे बिठाये अपने गॉव के तरफ निकल पडा है। शहर से गॉव कि दूरी लगभग हजारो किलोमिटर होगी फिर भी वह चले जा रहा है । उसके पॉव के छाले अब घाव मे बदल गये है, फिर भी हिम्मत नही हारा चलता चला जा रहा है।

चल दिये हैं पैदल
मिलो दूर अपने गॉव को
नही दिखता है उसको अब
छाले उसके पॉव के

कंधे पर बिटिया लिये
हाथ में गठरी ताक रहे है राह को
नही दिखता है उसको अब
घाव उसके पॉव के

मजबूरी थी उसकी
निकल पडे है शहरो से गॉव को
नही दिखता है उसको अब
बहते खून उसके पॉव के

थक ना जाये ये कदम
चलते जाते है अपने राह को
नही दिखता है उसको अब
कॉटे अपने पॉव के

चुभता है सडक कि बजरी
सूरज कि है खड़ी दोपहरी,
देखे वो अपने ठॉव को
नही दिखता है उसको अब
रोक ले अपने पॉव को

कैसे ये सहता है दर्द
देखो यह वही है मर्द,
झुका देता है जो चट्टान को
नही दिखता है उसको अब
दर्द से दुखते पॉव को

~ धीरज गुप्ता 

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