कलमकार शोएब अंसारी कई सवालों के जवाब जानना चाहते हैं, जिसका जवाब तो ईश्वर ही दे सकतें हैं। होनेवाले नुकसान के कारणों को इस कविता में पूछा गया है।
बिना मौसम के ये बरसात ज़रूरी थी क्या?
फसले देहकां को ये आफात ज़रूरी थीं क्या?काश हो जाता सवेरा भी बिना इस शब के
ये अंधेरे से भरी रात ज़रूरी थी क्या?पहले दिल चूर किया मुझसे न मिलकर उसने
फिर ये कहकर के मुलाक़ात ज़रूरी थी क्या?इश्क़ के पहले ही इजहार का इंकार हुवा
इश्क़ में ऐसी शुरुआत ज़रूरी थी क्या?मसअला जो भी था हम बैठ के सुलझा लेते
यूं जुदा होने की ये बात ज़रूरी थी क्या?उसकी आंखे लिए फिरती तो है खम और सागर
फिर ये तामीरे खराबात ज़रूरी थी क्या?जब जुदा मां से हुए शान तो हंसकर होते,
इस तरह अश्कों की बरसात ज़रूरी थी क्या?~ शोएब अंसारी