हम किसान के बेटे हैं

हम किसान के बेटे हैं

जहाँ जाति धर्म की क्यारी में, उगती हों मानवता की फ़सलें,
जहां झूठ फरेबो से ऊपर, अनुशासन की बेलें निकलें।

कुल की मर्यादा की ख़ातिर, चौदह वर्षों तक बनवास सहे,
जहां कुल देवों को रिझाने को, दिन-दिन भर उपवास रहें।

हम उस भारत के बासी है, जो सरहद पर जान गंवाते है,
हम सच्चे और सरस बनकर, इस वतन का मान बढ़ाते हैं।

खुद अपने निवाले काटकर, सोने सम अन्न उगाते हैं,
हम किसान के बेटे है, जीवन संघर्षों ना घबराते हैं।

जब हरियाली छाती है तो, ये धरा स्वर्ग बन जाती है,
असमय बाढ़, ओला, बारिश, किसानो को खल जाती है।

हम पर्यावरण बनाने में, खुद को ही सक्षम पाते है,
इसीलिए ही सब मिलकर, धरती पर पेड़ लगाते हैं।

निर्मल स्वच्छ रहे जल तो, ये जीवन और सुगम होगा,
बीमारी से बचने का ये बस, अब सीधा सा साधन होगा।

दिव्यागों को इज़्ज़त देना, माँ बाबू जी सिखलाते है,
बड़े बुजुर्गों की बैठक से, हम सब अच्छे संस्कार पाते है।

कभी किसी की पीड़ा पर, हँसना है अपना धर्म नहीं,
खुद को भी जो प्रिय न लगे, अप्रिय बोले ये कर्म नहीं।

आधुनिकता का ये भूत, अभी सर पर मत चढ़ने देना,
माँ बाप की इज़्ज़त है तुमसे, इससे खिलवाड़ न करने देना।

फेसबुकी दुनिया मे हम, सब रिश्ते ऎसे भूल रहे,
ये इन्टरनेट वाले अब सब, मानवता सारी निगल रहे।

बचपन बंधुआ मजदूरी अब, भारत के लिए समस्या है,
शिक्षा की ज्योति से हरो इसे, ग्यान ही सुखद तपस्या है।

हे भारत के नव युवा जगो, ये अभिशाप मिटा दो तुम,
अपने इस श्रेष्ठ चमन को, शिक्षा से महका दो तुम।

~ करन त्रिपाठी

Leave a Reply


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.