रोती बेटियाँ

रोती बेटियाँ

हालात सही न हों तो रोना आ ही जाता है, आजकल हमारे देश में बेटियों के आँसू थम नहीं रहें हैं। अमानवीय व्यवहार उन्हे बड़ी चोट पहुंचा रहा है और अब एक बड़ा मुद्दा बना है- उनकी सुरक्षा। आजाद भारत में भी वे डरी हुईं हैं। कलमकार खेम चन्द ने उस समाज के लिए कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं जो बेटियों का दामन खुशियों से भर सकता है।

कभी हैदराबाद में दरिंदगी तो कभी रोया उन्नाव,
हमारी समाज में कैसा पसरा है ये बिखराव।
भूला दी दामिनी भूला गये गुडिया प्यारी,
दरिंदों को बीच चौराहे पर लटकाओ,
कब तक डरी-सहमी रहेगी बेटियाँ हमारी।
जागो बेटियों, जागो बहनों बनो खड्ग तुम दो धारी,
निकलो घरों से सड़कों पर मत बनो हालातों की लाचारी।
तुम्हारे साथ है हिन्द की आवाम सारी,
तुमसे ही सुसज्जित है परिवार के पुष्पों की फूलवारी।

मिटा दो लेख मिटा दो तख्तियों के सूलेख,
खुद ही लड़ना होगा समस्याओं से
ये बुद्धजीवियों का समाज देता रहेगा उपदेश।
बदलो मेरे देशवासियों बदलो मेरे नौजवानों,
नारी से हम है अब नारी रक्षा का संकल्प ठानो।
आओ! करें नवभारत बनाने की मिलकर तैयारी,
कोई भी बेटी दरिंदों की दरिंदगी का शिकार न बने अगली बारी।
जिनके घरों में बेटे हैं वो बेटों को परिपक्व संस्कार दो
यूं न किसी की बगिया के फूलों को तोड़ा करें,
माँ-बहनें, अर्धांगिनी है तुम्हारे भी घरों में
सबसे रिश्ता इंसानियत का जोडा करें।
दे रही है “नादान कलम” ये संदेश
माँ-बहनें सुरक्षित हो समाज में आओ बनाएँ ऐसा परिवेश
तभी महान बनेगा हमारा “भारत ” देश।

~ खेम चन्द

हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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