आज महामारी के दौरान जबकि सभी नागरिक अपने घरों में क़ैद है और कुछ ना कुछ सुकून से है और जी रहे है और वही दूसरी तरफ देश की पुलिस,डॉक्टर,समाज सेवी आदि सुधि जन अनवरत सेवा भाव में लगकर कितनों की ज़िन्दगी बचा रहे है और अपने ही परिवार से विमुख होकर अपनी ज़िंदगी को भी दांव पर लगा बैठे है। दूसरों की परवाह हेतु अपनी परवाह तक नहीं कर रहे है,लेकिन हमारे ही समाज में कुछ पापी व शैतान प्रवृत्ति के ऐसे लोग भी है,जो इन भगवानों पर हिंसात्मक हमले लगातार कर रहे है और तकलीफें दे रहे है। खास तौर से चिकित्सकों पर इन्हीं सारी संवेदनाओं को साथ लेकर कुछ पंक्तियां गीत के रूप में हाज़िर है।
ओए रूहों के ज़ालिम तुझे हुआ क्या है?
दुआ संग तुम क्या जानो आख़िर, दवा क्या है?
जब धरती कांपती है
यही बचाने आते है
तेरी रूहों को सुकुं मिले
ख़ुद में मर जाते है
क्यो नही समझते पापी, इन्होंने किया क्या है?
ओए रूहों के ज़ालिम तुझे हुआ क्या है?
आशियां छोड़ आते है
तेरा ही द्वार बचाने
और तुम राक्षस सा आ
जाते हो इन्हे जलाने
आह की आग से बच लो पापी, जानों बद्दुआ क्या है?
ओए रूहों के जालिम तुझे हुआ क्या है?
देव जमीं के, रौंद रहे हो
पता करो, इंसान है ये
हम मानव के सेवा में
लगे, सबके भगवान है ये
आसमां फलक ही उनका, कहते हो दिया क्या है?
ओए रूहों के जालिम तुझे हुआ क्या है?
चिकित्सक जा रहा पैदल
ले, शिफा की आंधी साथ
कोरोना संकट मिटाने हेतु
झट से बढ़ा रहे, अपने हाथ
केवल हमले करते हो, आख़िर इन्होंने लिया क्या है?
ओए रूहों के जालिम तुझे हुआ क्या है?
सारा देश दहक रहा
जब, ये बेचारे है डटे हुए
स्व भार्या छौना तजकर
है तेरी, खिदमत में सटे हुए
हे क़ातिलों निकम्मा बनके, जानते नहीं खुदा क्या है?
ओए रूहों के जालिम तुझे हुआ क्या है?
महामारी के लपटों में
स्वयं भी जल गए भगवान
फिर भी बेपरवाह हुए
बचा रहे है सबकी जान
हे मूर्ख अक्ल नहीं तुमको, इन्हें दिया क्या है?
ओए रूहों के जालिम तुझे हुआ क्या है?
हिंदू मुस्लिम सिक्ख ईसाई
शैतानी आदत तो छोड़ो
अपनी कुंठित मानसिकता
को,अब सदा के लिए तोड़ो
ये इमरान दुखी है तुमसे, ऐसा कोई किया है क्या?
ओए रूहों के जालिम तुझे हुआ है क्या?
~ इमरान सम्भलशाही