समाज का बेटियों के प्रति कुरीतियों से जुड़ा व्यवहार आदर्श नहीं माना जा सकता है। हालांकि आज बहुत से परिवर्तन हुए हैं और पूरानी रूढियों को मिटाने की कोशिश की जा रही है। कभी-कभी कोई घटना, दुर्व्यवहार उन्हें आहत करतीं हैं अतः हम सभी को समानता का भाव प्रकट करना चाहिए। कलमकार खेम चन्द बेटियों का हाल अपनी इन पंक्तियों में कुछ इस तरह करते हैं।
कहीं जलाई जा रही है तो कहीं पर बहाई जा रही है,
आखिर क्यों बेटियों की आवाज दबाई जा रही है?
क्यों कागज़ों पर वो स्वर्ग की दुनिया बसाई जा रही है,
हर राह पर बेटियाँ आखिर क्यों रूलाई जा रही है?
देखती निगाहें जकड़े किस जंजीर ने रखी है बाहें,
ना बनाओ बेटियों के लिये यूं काटों भरी राहें।बढ गया है बेटा-बेटी में अनुपात,
फिर कोई लगाए बैठा होगा किसी मासूम को घात।
आखिर कब सुधरेगी हमारी है जो एक मानवता की जात,
आओ उठाएँ बेटियों की रक्षा के लिये एकसाथ हाथ।
बेटी बचाओ ,बेटी पढाओ सिर्फ़ दीवारों पर राग न लगाओ,
आओ मिलकर सभी बेटियों को बचाओ।
गर बेटियों पर यूं ही होते रहे अत्याचार,
जरूर वो साँझ दूर नहीं जब ख़त्म हो जाएंगे घर परिवार।बहन, बेटी, माँ से ही ये संसार है,
माप न सकेगा इनके समर्पण को बहोत विस्तृत प्रेम का आकार है।
आखिरी क्यों हम बेटियों की दशा पर लाचार है,
उठाओ आवाज और बदलो सोच यही सबसे बढिया उपचार है।
न खेलो भेदभाव की हम तुम दीवाली,
वरन् वो दृश्य दूर नहीं जब बिन बेटी होंगे गांओं, शहर हर गली खाली।~ खेम चन्द
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