क्या लिखूँ?

क्या लिखूँ?

लिखने के लिए विषय की खोज भी आसान काम नहीं है। कलमकार पूजा साव की यह कविता इस दुविधापूर्ण कार्य के चयन का संबोधन करती है। अपनी कलम से लिखे शब्दों से लोगों के हृदय तक पहुँच जाना ही किसी पुरस्कार से कम नहीं है।

कभी-कभी सोचा करती हूँ,
एकान्त में बैठकर
क्या लिखा जाय
कविता में किसे पनाह दूँ
किस विषय पर लिखकर,
मन के उथल-पुथल को शांत करूँ।

अशेष विषय है, लिखने को
पर, मेरी कलम थम जाती है
मुझसे, कभी कहती है
ए! लड़की
तू, निर्भया पर लिख
प्रियंका रेड्डी, पर लिख
तू एक स्त्री है, स्त्री के मर्म को
शब्दों में पिरों दे।

फिर, अंदर से आवाज़ आती है
समाज में बहुत सी, घटनाएं
नकरात्मक चीजें, घट रही है
किस-किस पर लिखूँ,
कितने विषय, ना जाने कितने विषय…

पारिवारिक कलह से, नारी शोषण तक
बलात्कार उन नन्हीं, मासुम बच्ची का जो
महज़, छह महीने की परी, पुतली है
कभी, उस नौ महीने की बच्ची
तो, निर्भया कभी
फिर प्रियंका और ना जाने कितने
कितने…
अमानविक, पशुतापूर्ण
घटनाएं ।

कभी शादीशुदा जिंदगी का,
बर्बाद होना
सब पर लिखना चाहती हूँ
गांव को बदलने के
सारे वादे, नेताओं द्वारा
संसद के माजरे
तालाकशुदा व्यक्ति का मर्म
सब पर…

महावरी के प्रति, आज भी सजग नहीं स्त्रियां,
काम, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, बदला
बहुत विषय है,
समस्या है, उसका समाधान भी
पर, कोई सुलझा नहीं रहा।

मैं कभी-कभी, बैठकर
अनेक विषयों पर, दृष्टिपात करती हूँ
बड़ा असहाय पाती हूँ, खुदको
मानवीय मूल्यों के, ह्रास से
मानव जाति के, इतिहास से
मानव के, पशुवत व्यवहार से
मैं कभी-कभी.

~ पूजा कुमारी साव

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