वक़्त हमेशा एक जैसा नहीं होता है, कभी दुख तो कभी सुख से मिलाप होते रहता है। हमें स्वयं की समृद्धि और उन्नति पर गर्व नहीं करना चाहिए क्योकिन यह समयचक्र कब पलट जाए कहा नहीं जा सकता है। अमित मिश्रा की एक कविता भी है इसी विषय पर- वक़्त का पहिया घूमेगा।
अमित तेरो सुख मेँ जो खाए मोती चूर
तेरे संकट काल में वो खड़े हुए हैं दूर
मैनें तो तुमसे कोई उम्मींद नहीं पाली थी
याद जरा कर ले जब खाली तेरी थाली थी
मेरा क्या होगा हम तो किस्मत से लड़ते हैं
सोच स्वयं का तू जो टुकड़ो पर पलते हैं
याद जरा कर ले जब आंखें तेरी न सोई थी
अपने भूखे बच्चे के गम में कितना रोई थी
मैंने अपने हिस्से की खीर तुझे भिजवाई थी
बड़े प्यार से तुम दोनों ने उसको खायी थी
वक्त का पहिया घूम गया तू बातें भूल गया
अब तू बड़ा हो गया पैरों पर खड़ा हो गया
याद नहीं अपनी लाचारी भूल गया बातें सारी
भूल गया सब रिश्तेदारी बन गया तू अधिकारी
वक्त का पहिया फिर घूमेगा मै को तेरे छीनेगा
तेरा अहं भी टूटेगा जब दौलत से नाता छूटेगा
~ अमित मिश्र
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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