कब प्यार करोगे तुम?

कब प्यार करोगे तुम?

कलमकार महेश माँझी की एक रचना पढें-

आज है जो कल न हो कब प्यार करोगे तुम।
नजरो से मिला के नजरें कब इज़हार करोगे तुम।

आकर के देखो तुम शीश महल बनाया है।
दिल के हर दरवाज़े खोले स्वासो को बिछाया है।
सूरत देखी है जबसे होश अपना खोये हम
खुद को खोकर तुझ में तुझको पाया है।
जीवन के सफर का अधियार बनोगे तुम
आँगन है मेरा सूना कब गुलज़ार करोगे तुम।

तेरी तस्वीर से तुझे आस पास देखा है।
सागर की लहरे अधर पे प्यास देखा है।
मालूम नही है तुझको इश्क है मुझको
हरदम मेरे हमदम तेरा अहसास देखा है।।
जिंदगी पतझड़ वसन्त हो तुम
मै कोरा कागज हु कब रंग भरोगें तुम।।

मै तुझमे तू मुझ मे फना हो जाए।
ख्वाब से निकल, रुबरु हो जाए।
इश्क़ के समंदर में डूबे इस कदर हम
तैरने से पहले किनारे ही खो जाए
प्यार ही बंदिशें तोड़ दे आज हम
इज़हार करके अब प्यार करोगे तुम।

~ महेश वर्मा (माँझी)

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