कलम जब भी कुछ लिखती है

कलम जब भी कुछ लिखती है

कलमकार दिलवन्त कौर की यह रचना पढ़िये जो कहतीं है कि कलम जब भी कुछ लिखती है तो वह एक विचार बन जाता है, सच्चाई प्रकट करती है और मार्गदर्शन करती है।

ये कलम जब भी कुछ लिखती है
चोट सीधे जहन पर लगती है

खौफ नहीं इसको जमाने का
सामने इसके कायनात झुकती है

अल्फाजों के तीर हैं चलते
जब जब भी कागज पर चलती है

स्याही भी मखमली सी हो जाती
जज्बातों की जमीं पर, ओर निखरती है

फर्ज अपना निभा देती सच कह कर
कलम की सच्चाई झूठों को अक्सर खलती है

~ दिलवन्त कौर

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