कौन थी वो?

कौन थी वो?

कलमकार खेमचंद कहते हैं- “कुछ बातें अल्फ़ाज़ों और किताबों में सच्ची लगती है, तुम नादान कलम को आज भी अच्छी लगती है” और उसके बारे में जानना भी चाहतें हैं।

सभी पुछते हैं मुझसे कौन थी होगी वो
हम भी कह देते हैं रहने दो जौन थी होगी वो।
तुम कहो तो बता दूं ज़माने को कौन थी वो
कि कोई परी या कोई चांद का टुकड़ा ना थी वो।
छुपाये रक्ख़ा है तुम्हें अपने अल्फ़ाज़ में
उम्र बीत जाने पर भी हमें याद करे संजोये रक्ख़ा है किसी किताब में।
शायद भाग जाना प्रेम में ये हमारा भी रिवाज़ नहीं
हमारी महोब्बत जैसा शायद कोई आगाज़ नहीं।
किसी के पास दुनिया और समाज नहीं
हम कैसे ना कहें हमें तुम पर नाज़ नहीं।
बहोत कीमती लम्हों में तुमने महोब्बत सिखाई है
हमें जीने की राह तुमने ही तो दिखाई है।
नादान कलम की तुम ही परछाई हो
पहचान तमने ही नादान कलम को दिखाई है।
सभी कहते हैं नादानी के रिश्ते पराये हैं
उन्हें कौन समझाये नादानी ने ही तो आजतक रिश्ते बनाये हैं।
कितने स्वप्न तुमने भी नादान कलम के सजाये हैं
अंधेरी राह में दीपक कभी तुमने भी तो जलाये हैं।
इबादत हो प्रार्थना हो मेरी तुम नमाज़ हो
इलाज़ ना हो सके नादान कलम का वो लाइलाज़ हो।
सब पुछते हैं नादान कलम से कौन थी होगी वो
प्रेम में ये एकतरफ़ा मिज़ाज अच्छा नहीं है
दिल ही तो है कोई बच्चा नहीं है।
पुछता है जब कोई इश्क तुम्हारा सच्चा नहीं है
हम भी कह देते हैं सवाल अच्छा नहीं हैं।
तुम कह दो कभी बता दूं खुद को कौन है वो
पर यादें कहती है रहने थे जौन होगी वो।
कुछ कहानियों में ज़िन्दा है खेम भी यहाँ
आशा रखते हैं खुश होंगे वो भी वहां।

~ खेम चन्द

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