ख़ुद-ब-ख़ुद रुक जाते हैं, कदम मेरे चलते चलते।
मैं आगे क्यों नहीं बढ़ता, जब मंज़िल का पता मेरे पास है।
सोचता हूँ कोई आए, और ले चले आगे मुझे।
और किसका इंतज़ार है मुझे, जब मेरा हमसफर मेरे पास है।
मंज़िल है सामने खड़ी, कुछ ही दूर चलना है मुझे।
फिर चल क्यों नहीं पाता, जब हौसला भी मेरे पास है।
पार तो करना है दरिया, गहरे मुसीबत का मुझे।
मौत का डर क्यों लगता है, जब नव मेरे पास है।
चंद दुखों से डर-डर कर, होती है तकलीफ़ मुझे।
क्यों डर रहा हूँ मैं, जब लाखों खुशियाँ मेरे पास है।
मेहनत रंग लाएगी और चूमेगी मंज़िल मेरे कदम।
इसका यक़ीन क्यों नहीं होता, जब दिल मेरा मेरे पास है।
अभी-अभी तो कुछ पाया है, और खोया भी नहीं है।
कुछ खो जाने का डर क्यों है, जब मेरा सब मेरे पास है।
मंज़िल प लेने पर होंगी, मनचाही खुशियाँ चारों ओर।
क्यों कुछ नहीं करता मैं, जब सारे साधन मेरे पास हैं।