लाकडाउन मे जो लोग विभ्भिन परिस्थितियो में मारे गये लोगों को यह कविता समर्पित। ईश्वर उनकि आत्मा को शांति प्रदान करे।
अन्धेरा छट जायेगा,
सूरज जब उग आयेगा!
दिपक भी जल जायेगा,
उस मॉ को कौन समझायेगा?
जिसका लाल अब ना आयेगा।घर कि खुशिया लूट जायेगा,
अब कहा घर मे रौनक आयेगा!
विरान पड़ जायेगें घर आँगन ,
उस बाप को कौन समझायेगा?
जिसका बेटा अब ना आयेगा।दुनिया उसकि उजडं गयी,
कैसी मनहुस ये घड़ी हुयी!
विपदा उस पर कैसी ये पडी,
उस पत्नी को कौन समझायेगा?
जिसका पति अब ना आयेगा।दौड़ आती थी जो बाहर,
बस तुम्हारे आने कि आहट से।
उस गुड़िया के खातिर तुम चल दिये पैदल थे,
उस गुड़िया को कौन समझायेगा?
जिसका पापा अब ना आयेगा।गॉव मुहल्ला भी खाली खाली सा है,
जब से गये थे तुम परदेश!
वो बचपन का यार पछतायेगा,
उस यार को कौन समझायेगा?
जिसका साथी अब ना आयेगा।~ धीरज गुप्ता