कलमकार आनन्द सिंह की कविता “रात सोचते गुजरेगी” पढिए। आपने भी रातों में सोने के बजाय सोचने का काम किया होगा और नींद कोसो दूर खड़ी होकर आप ही को निहारती रही होगी।
ना जाने क्यों यूं मध्यनिशा में
नींद मेरी उर जाती है
भविष्य की चिंता हर बार क्यों
विचलित सी कर जाती हैपिछले छन मै शांत ही था पर
अब ज्वार सा उठता अंतर्मन में
चिंता के बादल हैं छाते
प्रतिकूलता आई जीवन मेंद्वंद तो इतना सा है कि
इसकी उसकी किसकी सुनूं मैं
रास्ते दोनों ही नहीं भाते
कौन सा अब राह चुनूं मैक्या हर रोज अब रात मेरी
हालात कोसते गुजरेगी
तिमिर मिटाने वाली वह
प्रकाश ढूंढ़ते गुजरेगीरास्तों का ना कोई जायजा
ना ही मंजिल का अंदाजा
पर जाना अभी बरी दूर है
सो सफर दौड़ते गुजरेगी
हां रात सोचते गुजरेगी~ आनन्द सिंह