मैं शनि हूँ, रवि बनना चाहता हूं

मैं शनि हूँ, रवि बनना चाहता हूं

अंजलि जैन “शैली” की यह रचना पढिए जो बताती है कि कर्मशील रहने वाले लोग सारी बाधाओं को दूर करते हुए सफलता की ओर अग्रसर होते हैं। जहाँ चाह है वहीं राह होती है, कर्मवीर संसाधनों की कमी होने के बावजूद भी सफलता का मार्ग ढूंढ लेते हैं।

तीरगी सम्त में
चराग़े रहगुजर बनना है
मेहनत तहजीब से
किस्मत बदलना है
मैं शनि हूँ।

हर शनिवार को आवाज़
देता दहलीज पर,
इक नन्हा बालक
आखेट हो जैसे नैन भर
ख़ाली पेट में भी अनल
या कहूँ भाटा-ज्वार
मौन सी आह ओ पुकार

दे दे माई !! दे दे माई
मुझको थोड़ा सा प्यार
भले दे दो उधार
धुलवा लो अपनी कार
मैं आया दुआ लेकर तुम्हारे द्वार

मैं गयी कुछ लायी खाने को यार
तू बैठ बैठ मेरे चौपाट
फिर वो शरमाया, जो था खोया सा
बोला माई दे दो,
मुझे वो इक किताब जो आपके बेटे
ने पढ ली,
न है मेरे घर में इसे लाने को इक चबन्नी

किसको कोसूँ
किस पे रोऊँ
बातें हैं सारी बेकार
किसने बनाया मुझको शनि
कौन है इसका जिम्मेदार?

~ अंजलि जैन “शैली”

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