सेना के जवान सरहद पर तैनात रहकर राष्ट्र की सुरक्षा में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते हैं। उनका सबसे बड़ा धर्म है देश की सेवा; कलमकार आनंद सिंह की यह कविता अवश्य पसंद आएगी और आपका भी मन तिरंगे के सम्मान में उत्साह से ऊर्जावान हो जाएगा।
चाहे बहे अश्रू की धाराएं
आए निज पथ में विपदाएं
परवाह ना एक कर पाऊं मैं
तन मन धन जीवन समर्पित
इस मिट्टी को कर जाऊं मैं
यह जीवन है तो राष्ट्र का है
और राष्ट्र हेतु मर पाऊं मैं
आकांक्षा तो बस इतनी सी अब
की रंग तिरंगा रंग जाऊं मैंचाहे मरूस्थल की तपती दोपहरी
या हो हिमालय की शीतलहरी
चिंता ना कर ऐ मात्रभूमि तु
है तेरा पुत्र खरा बनके प्रहरी
चाहे आए जलधी में ज्वार भाटाएं
बवंडर देख मन भी यदि घबराए
फिर भी रख जान हथेली पर
प्रकृति के आगे तन जाऊं मैं
मृत्यु भी अगर निश्चित हो तो
मृत्यु से भी लर जाऊं मैं
आकांक्षा तो बस इतनी सी अब
की रंग तिरंगा रंग जाऊं मैंकर क्षमा मुझे ए मात मेरी तु
तेरा सहारा ना मैं बन पाऊंगा
है शरहद मुझे पुकार रही
खातिर उसके अब जाऊंगा
चाहता हूं रुकना मैं भी पर
अब कदम रोक ना पाऊंगा
कर क्षमा मुझे ए मात मेरी तु
तेरा सहारा ना मैं बन पाऊंगा
प्रार्थना मेरी ईश्वर से है यह
की फिर तेरा गर्भ ही पाऊं मैं
दोनों जन्मों का कर्ज चुकाने
तेरे कोख से आऊं मैं
आकांक्षा तो बस इतनी सी अब
की रंग तिरंगा रंग जाऊं मैंन मोह जीवन से
ना भय मृत्यु का
हे ईश्वर इतना ही चाहूं मैं
देश सोए मेरा नींद चैन कि
खातिर इसके जग जाऊं मैं
निज मातृभूमि की रक्षा हेतु
अपना शीश चढ़ाऊं मैं
यह जीवन है तो राष्ट्र का है
और राष्ट्र हेतु मर पाऊं मैं
तब जाके भारतभूमि का
वीर सपूत कहलाऊं मैं
आकांक्षा तो बस इतनी सी अब
की रंग तिरंगा रंग जाऊं मैं~ आनंद सिंह
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