तुम बिन

तुम बिन

कोई हमें इतना पसंद आ जाता है कि हम उसके बिना खुद को अधूरा सा महसूस करते हैं। कलमकार डॉ. राजेश पुरोहित शर्मा जी ऐसी ही स्थिति पर चंद पंक्तियाँ लिखी हैं।

सावन भी पतझड़ सा लगता है तुम बिन।
घर आंगन सूना सुना लगता है तुम बिन।।

माथे को सहलाना और हमको समझाना।
अब नेक राह कौन चलाएगा तुम बिन।।

उम्मीदों की आस बन जीवन मे तुम आई।
तन्हाई में कैसे बीते रात दिन तुम बिन।।

झोंका सा आया सुख चैन ले गया उड़ा ।
कैसे संभालेंगे हम उड़ता मन तुम बिन।।

हर सितम को तुमने हँसी खुशी में गुजारा।
हम कैसे गुजार लेंगे बाकी के दिन तुम बिन।।

सन्नाटे में पत्थर की सदा सी लगती है दोस्त।
शहर की ये गलियाँ सूनी लगती है तुम बिन।।

बेख़ौफ़ घूमते थे जज्बात तुम्हारी यादों में।
राजेश अब कैसे मन को बहलायें तुम बिन।।

डॉ. राजेश पुरोहित

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