कलमकार साक्षी सांकृत्यायन लिखतीं हैं कि हर युग में औरतों को उनका सम्मानित स्थान नहीं मिल पाया। समाज के संस्कार में जरा सी कमी रह ही जाती है जिससे स्त्रियों के मन को पीड़ा पहुंचती है।
हर युग में चीर हुआ औरत का,
कपड़ो की कमीं न गाओ।
हैवान दरिंदों को तुम सब
मिलकर ऐसे न बढ़ाओ।अपनें अपनें बेटों को भी,
संस्कार शब्द सिखलाओ।
कब तक बेटी दोषी होगी,
बेटों के मन न बढ़ाओ।रिश्ते नातें कोई भी हों,
इंसानियत को दिखलाओ।
तुम कृष्ण नहीं बन सकते तो,
इंसान का रूप बन जाओ।कानून है अंधा बहरा भी,
तुम आशाओं को भुलाओ।
गर आस पास हो अत्याचार,
तुम ख़ुद ही शस्त्र उठाओ।सरकार सुनेगी नहीं कोई
अब हक की गुहार लगाओ।
कब तक चुप रह वंचित होगे,
सब चुप्पी अपनी हटाओ।
…. हर युग में …..~ साक्षी सांकृत्यायन