हर एक मजदूर योद्धा होता है, वे दो जून की रोटी जीतने के लिए प्रतिदिन संघर्ष करते हैं। कलमकार शुभम सिंह ने मजदूरों की संघर्षगाथा इस कविता में लिखी है और बताया है कि किस तरह उनका संघर्ष एक युद्ध सिद्ध होता है।
रोज सबेरे एक योद्धा
झोला-झंटा और हथियार लेकर
चल देता है,लड़ने एक जंग
रोटी जीतने के लिए ।हाँ रोटी।
जा भीड़ता है किसी कारखाने के
लोहों से लोहा लेने के लिए।
कोड़ने लगता है कोयले की खदान
सोना-हीरा नहीं
रोटी कोड़ने के लिए ।हाँ रोटी ।
फूंक देता है ईंट चिमनी को
जिसकी धुआँ देखते हैं हम।
अपनी महल पिटाने के लिए नहीं
रोटी सेंकने के लिए ।हाँ रोटी ।
छाती के जोर से बाँध देता है
कोई बाँध, बना देता है डैम
आपार संभावनाओं के लिए नहीं
उसकी रोटी ना बहे बाढ़ में
इस उम्मीद के लिएहाँ रोटी ।
शाम को घर लौट आता है वो योद्धा
अपनी रोटी जीतकर,रोटी खाता है
और सो जाता है गहरी नींद में
इसलिए नहीं देख पाता है सपने
अपने भविष्य के लिए।
फिर सबेरे रोज कि तरह
वो बहादुर योद्धा
चल देता है,लड़ने एक जंग
रोटी जीतने के लिए।हाँ रोटी।
आज जीता है इस योद्धा ने
प्रेम कविता लिखने बैठा
एक पागल कवि के मन को
गुलाम बनाया है कलम को
दुआ करता हूँ,चिमनी की धुआँ
योद्धा की संदेश भगवान जी तक
पहुँचायेगी एकदिन।
~ शुभम सिंह