विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस – २०२०

प्रकृति संरक्षण दिवस हर साल 28 जुलाई को मनाया जाता है। World Nature Conservation Day 2020

प्रकृति का सन्देश ~ स्नेहा धनोदकर

प्रकृति ये देती संदेश
मानव, बदल अपना वेष
प्रदुषण को कर कम,
आंखे अब करले नम
ना कचरा फैले सब ओर,
कम करदो ध्वनि का शोर
पानी को ना व्यर्थ बहाओ,
हर माह एक पेड़ लगाओ
स्वच्छ हुयी है जो धरती,
उसे अब रखो निर्मल बनाये
ख़ुश्क हो गया था तू,
प्रकृति को लेकर हैं इंसान
इसीलिए मचा हुआ हैं हर तरफ घमासान
भूकंप, बारिश, ओले,
महातूफान और महामारी
एक साथ ही मिल रही हैं
अब सजा सारी
प्रकृति का संरक्षण ही,
अब तेरा बचाव हैं,
सुधर जा अभी,
ना गहरा हुआ घाव हैं,
मानव जीवन का स्वार्थ
प्रकृति मे हैं व्याप्त
कही ऐसा ना हो,
सब हो जाये समाप्त।

स्नेहा धनोदकर
कलमकार @ हिन्दी बोल India

प्रकृति ~ आलोक कौशिक

विध्वंसक धुँध से आच्छादित
दिख रही सृष्टि सर्वत्र
किंतु होता नहीं मानव सचेत
कभी प्रहार से पूर्वत्र

सदियों तक रहकर मौन
प्रकृति सहती अत्याचार
करके क्षमा अपकर्मों को
मानुष से करती प्यार

आता जब भी पराकाष्ठा पर
मनुज का अभिमान
दंडित करती प्रकृति तब
अपराध होता दंडमान

पशु व पादप को धरा पर
देना ही होगा उनका स्थान
करके भक्षण जीवों का
नहीं होता मनुष्य महान

आलोक कौशिक
कलमकार @ हिन्दी बोल India

पर्यावरण प्रदूषण ~ जीवन धीमान

वृक्ष काट-काटकर हम ने,
माँ धरती को विरान कर डाला |
बनते अपने में होशियार,
अपने ही घर में डाका डाला |

बहुत लुभाता है गर्मी में,
अगर कहीं हो पीपल या बड़ का पेड़।
निकट बुलाता पास बिठाता
ठंडी हवा का झोंका
पूरे शरीर में शांति लाता ।

आओ पेड़ लगाएं जिससे
धरती पर फैले हरियाली।
तापमान कम करने को है
एक यही ताले की ताली

ठंडा होगा जब घर-आंगन
तभी बचेंगे मोर-बटेर
तापमान जो बहुत बढ़ा तो
जीना हो जाएगा भारी
धरती होगी जगह न अच्‍छी
पग-पग पर होगी बीमारी
रखें संभाले इस धरती को
अभी समय है अभी न देर।

जीवन धीमान
कलमकार @ हिन्दी बोल India

आओ प्रकृति बचायें ~ विनय कुमार वैश्कियार

प्रकृति ने ही तो हमें संवारा है
पर हमने क्यूँ इसे बिगाड़ा है?
इसकी हर रचना हमें भाती है
यही तो हमारी सच्ची थाती है

संकल्प करें! इसे हम ना उजाड़े
फ़िर तो प्रकृति ख़ुद को ही सवारे
आओ बतायें, हम क्या-क्या बचायें
दूर की सोचें न सोचें दायें-बायें

पेड़ लगाएं, हरियाली लाएं
जीने की ज्यादा सांसे पायें
नदियाँ बचायें, जीवन चलायें
हर किसी की ये प्यास बुझाये

पर्वत बचायें, वर्षा लाएं
पशु-पक्षी इसमें ही शरण भी पाये
हवा बचायें, घुटन हटाएँ
धरा की ये तपन भी घटाए

मिट्टी बचायें, फसल लहलहाएं
हर जीवन ही भोजन पायें
पशु-पक्षी बचायें, भोजन-क्रम चलायें
हर जीवन से संकट हटाएँ

प्रकृति बचायें, स्वयं को ही बचायें
धरती माँ का हम ऋण भी चुकायें

विनय कुमार वैश्कियार
कलमकार @ हिन्दी बोल India


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