वक्त की झुर्रियाँ

वक्त की झुर्रियाँ

वक्त थमता नहीं है और न ही हमारी उम्र। यह हमेशा एक जैसा नहीं रहता इसलिए हमें अपनी ताकत व रूप रंग पर घमंड नहीं करना चाहिए। कलमकार पूनम भारती की कविता कहती है कि वक्त की झुर्रियों में सब छिप जाता है।

वक्त की झुर्रियों में छुप जाएगी सारी जवानी
कैसे इतराओगे तब खोकर के हुस्न निशानी ।

इक मोड़ पे तो आकर रुक ही जाओगे आख़िर
किसे सुनाओगे उस हिज्र की दास्ताँन ज़ुबानी ।

ताउम्र नहीं कुछ देखो ज़रा आईना-ए-हकीकत
आहिस्ता से छलती मगर ढल रही उम्र सुहानी ।

ख़िजा के मौसम में कहती रही वो नज़र मुझसे
टूटे फूलों की भी होती है कुछ अपनी कहानी ।

सिमट जब जाएगी लकीरों में जिस्म की रवानी
कैद कर लेना मन के कोने में वो हुस्न रुहानी ॥

~ पूनम भारती

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