तुम पे लिखूँ ग़ज़ल व गीत

तुम पे लिखूँ ग़ज़ल व गीत

कलमकार लाल देवेन्द्र श्रीवास्तव लिखतें हैं कि अपने साथी/मीत पर तो अनेकों गजल और कविताएं लिखीं जा सकती हैं क्योंकि वह होता ही है इतना अच्छा कि उसकी हर एक बात प्रेरित करती है।

तुम पे मैं लिखता हूँ ग़ज़ल व गीत,
तुम हो मेरे जीवन के सच मनमीत।
तुम बिन कुछ भी न अच्छा लगता,
तुम बिन जीवन में न कोई संगीत।।

तुम बिन यह जीवन लगता अधूरा,
आ जाओ तो सचमुच जीवन पूरा।
तुम ही हो मेरे ख़्वाबों की मलिका,
भर दो जीवन के रंग जो है कोरा।।

साथ तेरे लगता जीवन ख़ुशहाल,
वरना जीवन कितना रहा बदहाल।
तुम बिन जीवन कैसा लगता सूना,
तुम संग फेरे लेना मुझे इस साल।।

तुम बिन सूना लगता है मेरा संसार,
तुम हो तो सचमुच, जीवन गुलज़ार।
न कभी बेवफ़ाई करना तुम मुझसे,
अपने से ज़्यादा तुम पर है ऐतबार।।

साथ तुम्हारेबनते हैं इंद्रधनुष से रंग,
जीवन में बहार लगती बस! तेरे संग,
तुम बिन ये जीवन उदास हो जाएगा,
तुमसे ही सीखा जीवन जीने का ढंग।।

तुम बिन शरीर में न लगती धड़कन,
तुम ने जीवन बना दिया मेरा चंदन।
तुमने मेरे जीवन पर किया उपकार,
तुमको दिल से करता मैं नित वंदन ।।

~ लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

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