कोरोना महामारी ने २१ सदी में ऐसी दस्तक दी है कि सम्पूर्ण विश्व इससे त्रस्त हो चुका है। लॉकडाउन का दौर चल रहा है, इस बीमारी से लड़ने के लिए लोग घरों में रहने पर बेबस हैं, सरकारें और संस्थाएं अनेक तरह के सुरक्षा और बचाव के कार्यक्रम को चला रहीं हैं। चिकित्सक और उनका पूरा दल इस बीमारी को दूर करने में जूटे हुए हैं। हमारे हिन्दी कलमकारों की कलमों ने भी उनके विचारों को दर्शाने की कोशिश की है, आइए कुछ कविताओं के जरिये रचनाकारों के मनोभाव जानें।
कोरोना योद्धाओं को नमन
अक्सर जिन्हें हम देख कर अनदेखा कर जाते थे,
जिनके किए उपकारों को चुटकियों में भुलाते थे,
उचित सम्मान की तो बात ही ना कीजिए,
कई बार असम्मान का घूंट उन्हें पिलाते थे,
कई बार कहा है फक्र से, काम ही तो है,
वो करते हैं तो क्या हम नहीं करते?
कूड़ा उठा कर, चुपचाप जब वो दरवाजे से जाते थे,
याद करो क्या कभी उन्हें देख तुम मुस्काते थे?
सड़क पर घंटों खड़ा था वो ट्रैफिक कंट्रोल करता,
क्या हम आज से पहले उनका मान बढ़ाते थे?
डाक्टर नर्स की जरूरत तो जन्म के साथ ही पड़ी थी हमें,
क्या कभी उनके लिए प्रार्थना में सर झुकाते थे?
तब तो बस यही कहते थे, काम ही तो है,
वो करते हैं तो क्या हम नहीं करते?
महामारी ने आज चली हैं चालें कैसी?
वो जिनकी हमारे नज़रों में कोई कीमत ही ना थी,
आज उन्हीं के सहारे हम सब टिके हुए हैं,
वो करते हैं काम, हम तो बस घरों में छुपे हुए हैं।
घर परिवार भुलाकर वो स्वदेश की सेवा में डटे,
संक्रमण का खतरा उनको भी, वो फिर भी ना डरे।
कैसे – कैसे चुनौतियों से रोज लड़ते – भिड़ते हैं,
एक स्वस्थ और सुंदर देश का सपना बुनते हैं,
देश नमन करता है ऐसे कोरोना वीरों को,
स्वदेश हित में जो प्राण लुटाने से भी ना चुके हैं।
करोना
नया साल लेकर उमंग आता था,
अबकी बार करोना लेकर आया है,
दूर-दूर तक वीराना हुआ आज
जिन सड़कों पर गाड़ियां दौड़ती थी
आज दौड़ते पशु और पक्षी हैं
नया साल लेकर उमंग आता था
पिंजरे में रहने वाले आजाद हैं आज
आजादी से घूमने वाले बंद है आज
जो वक्त मांगते थे मिला वक्त आज
परलोक डाउन में बंद है सब आज
नया साल लेकर उमंग आता था
मानव की चहलकदमी रुकी है आज
चिड़िया की चहचहाहट है चारों ओर आज
पशु पक्षी खुश इस कदर है आज
चार से आठ हो गए हैं आज
इसको करोना ने जिंदगी की रफ्तार को
रुका इस कदर है आज
हवाओं ने भी रुख बदल लिया है अपना आज
जो बच्चे छुट्टियों के लिए तरसते थे
आज स्कूल के लिए तरसते हैं
अब तो चला जा करोना हमारी जिंदगी से
सभी बेहाल है आज
नया साल लेकर उमंग आता था
अबकी बार करोना लेकर आया है.
पलायन
जब लोगों की होती भीड़
आके खड़ी हो जाती शमशीर
इसका कारण है कोरोना
है मौत पाकर रोना-धोना।
हम खुद पलायन ला रहे
कोरोना को जगा रहे
आ गई घड़ी की संकट
क्या होगा अब क्या होगा
खुद ही अपने से पछता रहे।
ले लिया कोरोना रूप विकराल
बन जाएगी दुनिया यह कंकाल
गर बनाना नहीं तुमको कंकाल
तो नियमों में बध न इसको टाल।
इसमें ही तेरी भलाई है
मौतों की साया आई है
रखना है ध्यान कानूनो पर
कूदना नहीं है जूनो पर।
हम सबको मिलकर इसे भगाना है
अपने भीतर सतर्कता लाना है।
कितना बदलाव
पिछले वर्ष में मस्त हूं, आवारा हूं
इस वर्ष में बेचारा हूं, बेसहारा हूं।
क्या जमाना था,
दोस्तों को गले लगाना था।
घरों में रहना मजबूरी,
सोशल डिसटेनसिंग जरुरी।
एक ही सहारा
घर की चार दिवारी।
बिना सावधानी बाहर निकले,
तो जकड़ लेगी ये बीमारी।
ना घुमना ना फिरना
ना ना सिनेमा ना रिश्तेदारी
कहीं लॉक डाउन, तो कहीं करफ्यू
किसी की लगी है जान की बाज़ी
वर्दी सफेद हो या फिर खाकी
फिर भी हार ना मानी
मास्क लगाना हुआ जरुरी
नहीं तो जिन्दगी की इच्छाएँ
रह जाएगीं अधूरी
वो सामने खडी है
पर गले नहीं लगा सकता।
चार मीटर की दूरी से
निहार सकता हूं।
हाथ नहीं मिलना है
नमस्ते से ही काम चलाना है।
कोरोना को दूर भागना है
बाहर जाना है मौत को बुलाना है
घर में रहो सुरक्षित रहो।
कोरोना
क्यों जहान ये सारा
थम सा गया,
किसने दस्तक दी
जो मातम छा गया।
वो हंसी वो खुशियां
अब ढूंढकर नहीं मिलती,
सबके चेहरे पर
क्यों गम छा गया।
उड़ता मदमस्त परिंदा
शायद चोटिल हुआ है,
रफ्तार में कुछ
परिवर्तन आ गया।
एक अदृश्य विषाणु
का कहर बरसा
इस कदर,
पूरे विश्व भर में
तम छा गया।
ये सड़क-चौराहे
गलियां-किनारे,
सब मानव की राह
निहार रहे।
उछलता जल
ये बहती वायु
शोर कर मनुज को
पुकार रहे।
घर-घर की ये
कहानी हो गई
ये किसके कुकर्म की
मेहरबानी हो गई
शायद यह विपत की
घड़ी आई है।
भयभीत हुई मनुजता जो
घबराई है।
जो सोचा न था
वो हो रहा है,
पिंजरे में कैद मनुष्य
धैर्य खो रहा है।
सदा न रहा कोई
सदा न रहेगा
कोरोना का अन्त भी
शीघ्र होकर रहेगा
कोरोना को हम हराएंगे
कोरोना को हम हराएंगे
मास्क सभी लगाएंगे।
सामाजिक दुरी का कर्त्तव्य सभी निभाएं
भीड़ -भाड़ वाली जगह में कोई ना जाएँ।
कोरोना संक्रमित व्यक्ति को ढांढस बँधायें
मानवता का मिलकर परिचय करवाएं।
प्रक्षालक-साबुन से हाथ धुलायें
हाथ अब किसी से ना मिलाएं।
अभी भी छाया है वैश्विक पटल पर इसका प्रकोप
समाजिक दुरी और नियमो का पालन करें,
और लगाएं इसके बढ़ावे पर रोक।
होगी कभी तो कोरोना की जग से छुट्टी
पिलाएं सभी इसको प्रक्षालक की घुट्टी।
है मानव को वक़्त की ये एक सीख
पैसा, धन, दौलत, शौहरत कितनी भी कमा लो
बीमार होने पर मांगता रहता है ज़िंदा रहने की भीख।
अब मान भी जाओ कोरोना तुम्हारा ये आचरण नहीं है ठीक
आंकड़ें दुनिया के बदतर से बदतर बनाकर हो गया सटीक।
लगेंगे समझने में समस्या को अभी दिन और चार
कोरोना हम ढूंढ ही लेंगे तेरा उपचार।
विज्ञान का है हमारे पास हथियार
हर समस्या से निजात दिलाने के लिए रहता है तैयार।
बस समाजिक दुरी के नियमों को ढील ना दें
कोरोना को कोई नया भील ना दें।
कोरोना योद्धाओं का सम्मान करें
मन किसी के हींन- भावना ना भरें।
दूर नहीं है अब वो आने वाली नवभोर
कोरोना मुक्त होगा जब जगत चारोंओर।
कोरोना को हम हराएंगे
मास्क सभी लगाएंगे।
सामाजिक कोरोना को हम हराएंगे
मास्क सभी लगाएंगे।
सामाजिक दुरी का कर्त्तव्य सभी निभाएं
भीड़ -भाड़ वाली जगह में कोई ना जाएँ।
कोरोना संक्रमित व्यक्ति को ढांढस बँधायें
मानवता का मिलकर परिचय करवाएं।
प्रक्षालक-साबुन से हाथ धुलायें
हाथ अब किसी से ना मिलाएं।
अभी भी छाया है वैश्विक पटल पर इसका प्रकोप
समाजिक दुरी और नियमो का पालन करें,
और लगाएं इसके बढ़ावे पर रोक।
होगी कभी तो कोरोना की जग से छुट्टी
पिलाएं सभी इसको प्रक्षालक की घुट्टी।
है मानव को वक़्त की ये एक सीख
पैसा, धन, दौलत, शौहरत कितनी भी कमा लो
बीमार होने पर मांगता रहता है ज़िंदा रहने की भीख।
अब मान भी जाओ कोरोना तुम्हारा ये आचरण नहीं है ठीक
आंकड़ें दुनिया के बदतर से बदतर बनाकर हो गया सटीक।
लगेंगे समझने में समस्या को अभी दिन और चार
कोरोना हम ढूंढ ही लेंगे तेरा उपचार।
विज्ञान का है हमारे पास हथियार
हर समस्या से निजात दिलाने के लिए रहता है तैयार।
बस समाजिक दुरी के नियमों को ढील ना दें
कोरोना को कोई नया भील ना दें।
कोरोना योद्धाओं का सम्मान करें
मन किसी के हींन- भावना ना भरें।
दूर नहीं है अब वो आने वाली नवभोर
कोरोना मुक्त होगा जब जगत चारोंओर।
कोरोना को हम हराएंगे
मास्क सभी लगाएंगे।
सामाजिक दुरी का कर्त्तव्य सभी निभाएं कर्त्तव्य सभी निभाएं
कोरोना
खट्टे मीठे अनुभवों से
भरा ये साल
करोना से हुआ
हर मानव वबेहाल।
न समय का ज्ञान
न पूरे हुए अरमान
बहुत कुछ ले गया ये
कोरोना रूपी काल।
किया किसी को बेरोजगार
तो ढूंढा किसी ने स्वरोजगार
किसी के अपने रूठ गये
किसी के सपनें टूट गयें।
कुछ भूले भटके वापस आयें
कुछ रास्तें में ही अटक गयें
कुछ विवाह बंधन में बंध गए
कुछ बंधे हुए भी टूट गए।
कभी खाकी महान
कभी डाॅक्टर महान
होते रहें
और कृषक अन्न की प्यास
बुझाते रहें।
सभी गृहणी अग्रणी रही
पिता,पुत्र भी ॠणी रहें।
हैं चीनीयों की चाल या
प्रकृति का श्राप
पर मार झेल रही हैं
भूखे पेट की ताप।
छंटगे दुख के बादल शीघ्र
लेगा हर कोई स्वांस
खुले गगन के तले।
आशा हैं यही डूबते सूरज के बाद
उगे नया नित सूरज।