माता-पिता बच्चे के जीवन में अहम भूमिका रखते हैं। पिता के प्रति प्रेम और सम्मान को व्यक्त करतीं हुई कुछ कविताएं पढिए।
वो पिता है ~ कलानाथ रजत साव
जन्म माँ दे पर दर्द सहे जो ज्यादा
कोई और नहीं वो पिता है।
बच्चों से प्यार करें ज्यादा पर जता न पायें
कोई और नहीं वो पिता है।
अपने बच्चे से पहले साक्षात्कार मे
छलके आंसुओ को दबा कर चेहरे पर मुस्कान लाए
कोई और नहीं वो पिता है।
बच्चों की ख्वाहिसों को पूरा करने के लिए
जिसके सब दिन रहे एक समान
कोई और नहीं वो पिता है।
हर जरुरतअपनी पूरी करने के लिए
निर्भर रहे हम जिस पर ज्यादा
कोई और नहीं वो पिता है।
हर साल हमें चाहिए नये कपड़े पर
जिसका एक कपड़ा चले सालो दर साल से भी ज्यादा
कोई और नहीं वो पिता है।
जिसके फटकार मे भी हो प्यार
जो दूर से ही बच्चों पर लुटाए प्यार
कोई और नहीं वो पिता है।
बस केवल पिता ही हैं ~ चन्दू कन्नौजिया
जो अपनी शानो-शौकत को भूलकर,
जरूरत में सीमित रह जाता है,
बस केवल पिता ही हैं जो,
हर पल खुशियों के फूल खिलाता है।
जो अपनी खुशियों के आंसू पीकर,
कुटुम्ब की खुशी में खुशी सोचता है,
बस केवल पिता ही हैं जो,
हर होंठों पर मुस्कान लाता है ।
जो हर परिस्थितियों को स्वतः झेलकर,
परिवार में कष्ट न आने देता है,
बस केवल पिता ही हैं जो,
सबका जीवन सरल बनाता है ।
जो दिन-रात कड़ी मेहनत करके,
कुल का जीवन यापन करता है,
बस केवल पिता ही हैं जो,
भूखा रहकर भी सबका पेट भरता है ।
जो हर कठिनाई से अनुभव लेकर,
हर कार्य सरलता से करता है,
बस केवल पिता ही हैं जो,
हमें दुख में लड़ना सिखाता है ।
जो विशाल वृक्ष की छाया बनकर,
हम पर धूप न लगने देता है,
बस केवल पिता ही हैं जो,
हर तूफान में साहिल लगाता है ।
पिता ~ बलराम बथरा
जिम्मेदारियों का बोझ उठाने वाले, ‘मजबूत कंधे’
अव्यक्त पीड़ा के दर्द को भी, पढ़ने वाली, ‘आँखें’
अपना सर्वस्व, बिना अपेक्षा के लुटाने वाले, ‘हाथ’
हर तजुर्बा, बयां कर देने वाली, ‘चेहरे की झुर्रियां’
दो जून रोटी के लिए, धूप में तपता हुआ, ‘बदन’
समूचे परिवार को, शीतल छांव देने वाला, ‘साया’
कितना भी लिखें कम होगा, वो शख्सियत है ‘पिता’,
पिता का कोई ‘पर्याय’, ना था, ना है, ना हो सकेगा
पिता- प्यार का भंडार ~ पुजा कुमारी साह
हमारा जीवन ही पिता से है उनका महत्व
कैसे बया करू मैं, इस पृथ्वी पर हमारे लिये
ईश्वर का रूप है वो…
उनकी सच्ची सेवा में ही मुझे सर्वशुख है ।
पिता अमीर या गरीब हो सकता हैं ।
बच्चों के लिये होते “बादशाह’ है वो…
पिता घार के मुखियां, परिवार के मुख स्तंभ होते हैं ।
खुद के लिए कम, बच्चों के लिये ज़्यादा
सुख सुविधा जुटाते है वो…
घर का अभिमान, बच्चों का स्वाभिमान है वो
माँ धरा तो पिता आसमां हैं ।
पिता जीवन की वो ढ़ाल, जो परिवार पर
आने वाले हर तूफ़ा से लड़ जाते हैं।
सर्दी, गर्मी या तेज़ हो बारिश हिमालय
पर्वत बन जाते है वो…
मेरे जीवन मे माता-पिता का महत्व से
बढ़ कर कोई और नहीं।
पिता ऐसा पेड़ जो सदैव दुःख सहकर
हमे ठंढ़ी छांव देते है वो…
बातों में कठोरता तो आँखों मे असीम
प्यार का भंडार संजोए होते है वो…
पिता बच्चों के लिए माँ की दुनियां तो जहान होते है।
बोलते नहीं जुबा से मग़र, हमारी हर मुश्किल
का समाधान होते है वो…
उनकी एक “वाक्य मैं हूँ ना”
दाता तू पिता बनकर आया ~ रंजन कुमार
दाता तू पिता बनकर आया
तूने अनमोल खजाना दिखलाया
जिसे आज मैंने है पाया
संसार तूने दिखलाया
सुंदर संसार है मैंने पाया
जिंदगी का सही सलीका
तुमने जीवन मे है मुझे सिखाया
फर्श से अर्श तक
आज तूने ही तो है मुझे पहुँचाया
उठने से लेकर चलने, दौड़ने तक
तूने ही तो है मुझे सिखाया
दाता तू पिता बनकर आया
तूने अनमोल खजाना दिखाया
जिसे आज मैंने है पाया।
पिता का जीवन ~ विनय कुमार वैश्कियार
पिता!
कब अपने लिए है जीता?
संतान-जीवन प्रारम्भ से ही
स्वजीवन की समाप्ति तक
अथक और निरंतर
संतान का जीवन ही तो सवांरता
तो बोलो!
पिता, कब अपने लिए है जीता?
तमाम मुश्किलों और मुसीबतों से
संशय के बीच फंसे भवर से
निकाल बाहर करने में
ख़ुद को ही डाल मुसीबतों में
अपने संतान को बचाता
तो कैसे?
पिता, कब अपने लिए है जीता?
बच्चे के उँगलियों को थामे
ख़ुद न जाने कितनी ही बार गिरकर भी
बच्चे को गिर कर भी
उठने और चलने को सिखाता
तो भला!
पिता, कब अपने लिए है जीता?
बच्चे को कंधे पे बिठाये
ख़ुद ही दुनिया से नज़रअंदाज़ होकर भी
दुनिया से परिचय कराता
तो ऐसे में,
पिता, कब अपने लिए है जीता?
दुविधा या भटकाव में
या किसी के दुराव में
ख़ुद नफ़रत का शिकार होकर भी
बच्चे को सदा सही राह बताता
तो सोचो!
पिता, कब अपने लिए है जीता?
ख़ुद की इच्छाओं का दमन कर
हर सपनों का हवन कर
बस! बच्चे के सपनों को ही पूरा करता
तो अब सच सुनो!
पिता, बस अपने संतान के लिए है जीता
एक दिन पिता के लिए – भूपेन्द्र हरदेनिया
प्रकृति के समान
त्याग की प्रतिमूर्ति को
सागर सी भावमय अतल गहराई को
अंबर सी ऊँची प्रेरणाओं को
असंख्य प्रोत्साहनों को
शीतल बयार से फैले अहसासों को
वटवृक्ष सी घनी छाँव को
धरती के समान भार वहन करने की
असीम शक्ति
उसके विस्तार को
सृष्टि के साक्षात ईश्वर को
एक बिन्दु में समेटने जैसा
निरर्थक प्रयास है
पितृ दिवस।
इस शब्द के फैलाव को
नहीं सिकोड़ा जा सकता
एक दिन में।
जीना इसी का नाम है ~ मनीषा अग्रवाल
पापा तेरे चेहरे से ज्यादा
तेरी ममता को याद करती हूँ।
सर पर छत भी है
पर तेरे हाँथों के स्पर्श की कमी महसूस करती हूँ।
ना जाने क्यों छिन गये
तेरे साये मुझसे
और अपनो को अपनाने के लिए
छोड़ गये अकेला,
पर अब यह एकांकी भी
हँस कर स्वीकार करती हूँ।
अंदर में चाहे कितनी भी पीड़ा हो
रात की गहरी नींद में,
मन की गहराइयों में,
तू उतर ही जाता है
मुस्कान बन कर
और सुबह की बेला में
फिर एक दिन अधिक हो जाते है
यही सोच कर
जीना इसी का नाम है।
बुजुर्ग पिता ~ रूचिका राय
बुजुर्ग होते पिता ,मित्र बन जाते हैं
अनुभव की भट्ठी में तपे हुए वो
अपने अनुभव को सांझा करते हैं।
नही थोपते निर्णय अपना,
बस मार्ग अपने नजरिये से सुझाते हैं।
हालाँकि कभी कभी कल और आज में सामंजस्य नही बिठा पाते,
मगर फिर भी समझौतावादी हो जाते हैं।
बुजुर्ग होते पिता जो सख्त थे कभी नारियल की तरह सहज हो जाते हैं।
छोटी छोटी बातों से खुश हो जाते वो,
थोड़ा सा ध्यान और प्यार से पिघल जाते हैं,
बुजुर्ग होते पिता एक मित्र बन जाते हैं।
अपने ऊपर खर्च करना अब भी फिजूलखर्ची लगती उन्हें,
मगर बच्चों द्वारा दिए गए उपहार में वो प्यार छुपा पाते हैं।
जिम्मेदारियों को निभाते हुए सारा जीवन बिताने वाले,
जिम्मेदारी से मुक्त होकर सुकून बड़ा पाते हैं।
खुश होते बच्चों की प्रगति से,
मगर अपनी खुशी नही दिखाते हैं।
अभी भी फिक्र उतनी ही रहती बच्चो की,
जब तक बच्चे घर न आ जाये तब तक चैन नही पाते हैं।
बुजुर्ग होते पिता एक मित्र बन जाते हैं।
प्यार दिखाने में अभी भी सहज नही होते वो,
माँ को ही वो माध्यम बनाते हैं।
तकलीफ में देख बच्चों को सुकून से नही रह पाते हैं,
कितना भी बड़े हो जाये संतान उनकी
बस बच्चे ही समझते रह जाते हैं।
बुजुर्ग होते पिता मित्र बन जाते हैं।
बरगद के पेड़ की तरह होते वो,
जमाने की आँच से अब भी बचाते हैं,
बुजुर्ग होते पिता मित्र बन जाते हैं।
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SWARACHIT1141C | पिता |
SWARACHIT1141B | पिता- प्यार का भंडार |
SWARACHIT1141A | बस केवल पिता ही हैं |
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SWARACHIT1072D | जीना इसी का नाम है |
SWARACHIT1072C | एक दिन पिता के लिए |
SWARACHIT1072B | पिता का जीवन |
SWARACHIT1072A | दाता तू पिता बनकर आया |