बुलबुला हो

बुलबुला हो

पानी के बुलबुले जैसे ही यह जीवन है, न जाने कब फूटकर पानी में विलीन हो जाए। कुछ दिनों के इस जीवन में कड़वाहट न आने दें; अमन, प्रेम और प्रगति निरंतर विद्यमान रहनी चाहिए। कलमकार इमरान खान की रचना पढें जो इसी तथ्य को संबोधित कर रही है।

आज तुम हो,कल सच है नहीं रहोगे यार
नस्लें जब बुरा बोलेंगी, तब क्या करोगे यार?

फिज़ा का राग बदलो या बदल दो चमन को
उसी बरसात में भीगना, अब कितना सहोगे यार?

शैतानी रंजिश में तू है, क्यों सबसे ऊपर
अब बस भी करो न, कितना क़त्ल करोगे यार?

दुनिया है फानी, निगाहें उठा के विरासत तो देख
जो है बचा अभी, उसे क्यो अब तोड़ोगे यार?

बुलबुला हो, तुम दरिया का ख़्वाब मत देख
जितना मिला है, कब तलक तुम तैरोगे यार?

जिनाखानो का शेर बन, आज तुझे है क्या मिला
सामने मौत खड़ी है, इसे कैसे टालोगे यार?

बचपन से जवां गुज़ार ज़रा जईफों को तो देख
उनके तराजुओं से, कहां कहां तौलोगे यार?

मत चलो,शैतानी गलियों में मेरे अब रहबर
इस अंजुमन में, कब देवता बन दौड़ोगे यार?

कुछ ऐसे ही बात को, सोच लो तुम अब इमरान
ताजीवन हरित दरख़्त, अब नहीं बेचोगे यार

~ इमरान खान पामेला

हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
https://www.facebook.com/hindibolindia/posts/443996283174216

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