तुम मेरे मनमीत

तुम मेरे मनमीत

दिल को जब कोई अच्छा लगने लगता है तो उसका साथ छोड़ने को मन ही नहीं होता है। कलमकार लाल देवेन्द्र श्रीवास्तव जी की पंक्तियाँ उन लोगों की परिस्थितियाँ दर्शाती हैं जिन्होने किसी को अपना मनमीत मान लिया हो।

मैंने तो सच में प्रीत किया,
नहीं किया है कोई गुनाह।
पल पल आती है याद तेरी,
मन में है मिलन की चाह।।

इंतज़ार करता रहा तुम्हारा,
बाहों में तुम दो मुझे पनाह।
सब्र हो रहा न अब मुझसे,
बस देख रहा तुम्हारी राह।।

जब से देख रहा था तुमको,
मन में रही मिलन की आह।
अब तो मेरा प्रणय निवेदन,
स्वीकार की बनाओ राह।।

सुबह शाम प्रतिदिन ही मैं,
आने की करता हूँ उम्मीद।
कब तक न आओगी तुम,
तेरे चाहत का बना मुरीद।।

कितना मेरा है पवित्र प्रेम,
किया है मैंने बचपन से।
मानो या न मानो इसको,
तुम्हें भी प्रेम होगा मुझसे।।

जन्म जन्म का साथ रहे,
अमर रहे मेरा अब प्रीत।
दिल से अब तुमको माना,
तुम हो अब मेरे मनमीत।।

~ लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

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