तू ही मेरी पूजा

तू ही मेरी पूजा

तू ही मेरी पूजा, तू ही मेरा मन्दिर है
ममता की खान, तू प्यार का समन्दर है
विपत्तियों मे तू शिखर के समान है
‘माँ’ तेरी चर्चा जग मे महान है
मुझको ‘माँ’ ने संस्कार दिए, सिखलाया कोई ऐब नहीं
मुझको मेरी ‘माँ’ से बढ़कर दुनिया मे कोई देव नहीं
संघर्ष देख निज माता का, किस्मत पर इतराता हूँ
अतीत मे कदी खो जाऊँ, नैनों अश्क बहाता हूँ
गर जन्म मिले फिर से जग में, तो वो ही मुझको कोख मिले
तात मिलें मुझको वो ही और वो ही ‘माँ’ की गोद मिले

~ देवेन्द्र पाल

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