कभी कभी, तुम मेरे दुखों से बढ़ कर,
मेरा सुख बन जाती हो,
वो सुख,
जो चिर आनंद प्रक्रिया में,
विवाद रहित शयन करता है,
जो किसी कोने में छिपी भावनाओं से
भयभीत होता है,
ही उससे विचलित होता है,
वो बस अपने उन्माद में छिपे
आसार देखता है,
जो धीरे धीरे,
विचारों के भांप में
उड़ जाते हैं।
~ शहंशाह गुप्ता “विराट”