याद तुम्हें कर रो लेता हूँ

याद तुम्हें कर रो लेता हूँ

कुछ पुरानी चीजों से बहुत गहरी यादें जुड़ी होती हैं और वे ओझल हो चुके उस सख्श को हमारे सामने दिखा देतीं हैं जिनसे हमारा लगाव था। कलमकार विजय कनौजिया भी लिखते हैं उन्हें याद कर कई लोग रो देते हैं।

वही पुरानी पाती पढ़कर
अब भी खुद को समझाता हूँ
जो तुमने लिखकर भेजा था
वही देख फिर मुस्काता हूँ..।।

चिट्ठी में पुष्पों की कलियां
जो तुमने मुझको भेजा था
बड़े जतन से संजो रखा है
वही देख मन बहलाता हूँ..।।

बार-बार अब भी पढ़कर मैं
फिर यादों में खो जाता हूँ
शायद तुम हो आस-पास ही
यही सोच खुश हो जाता हूँ..।।

लिखे थे जो तुम गीत प्रेम के
आज भी गाकर सुन लेता हूँ
जब थोड़ा भावुक होता हूँ
याद तुम्हें कर रो लेता हूँ..।।

चलो यही पूंजी है मेरी
जब तक पास तुम्हारी पाती
इसी से है इस दिल को राहत
तभी तो तन्हा रह पाता हूँ..।।
तभी तो तन्हा रह पाता हूँ..।।

~ विजय कनौजिया

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